*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है जगन्नाथ रथयात्रा। वैसे तो यह पर्व पूरे देशभर पर्व बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है, लेकिन इस पर्व का अनोखा और खास अंदाज जगन्नाथ पुरी में देखने को मिलता है। पुरी में होने वाले इस उत्सव में सिर्फ देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी काफी संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेने के लिए आते हैं। पुरी का नजारा इस उत्सव पर देखने लायक होता है। लोगों को पैर रखने तक की जगह नहीं मिल पाती है। इस रथयात्रा में भाग लेने से भक्त अपने पापों से मुक्ति पा लेता है। ऐसा भी कहा जाता है जो भी भक्त इस जगन्नाथ जी का रथ खींचता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। स्कन्दपुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
भगवान जगन्नाथ की यह रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से शुरू होती है। यात्रा मंदिर परिसर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर पर जाकर समाप्त होती है। ये भगवान श्रीकृष्ण की मौसी का घर है, जहां वे सात दिन तक आराम करते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा होती है, जो मुख्य मंदिर पहुंचती है। विशेष बात ये है कि इस यात्रा में भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा या रुक्मिणी नहीं होतीं बल्कि बलराम और सुभद्रा होते हैं। कृष्ण जी के साथ इस घर में उनके भाई बलभद्र और छोटी बहन देवी सुभद्रा सात दिनों विश्राम करते हैं। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को 'आड़प-दर्शनÓ कहा जाता है। इस मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहीं पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था।
इस यात्रा में भक्ति रस का अनूठा संगम देखने को मिलता है। हर कोई भक्त कृष्ण भक्ति में लीन दिखाई देता है। बच्चे हो या फिर बूढ़ा, सब कृष्ण की भक्ति में मग्न रहते है।
जगन्नाथ पुरी में रथयात्रा की तैयारी कई समय पहले से ही शुरू हो जाती है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा- तीनों के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। ये लकड़ी वजन में भी अन्य लकडिय़ों की तुलना में काफी हल्की होती है, इसलिए इस रथ को खींचने में ज्यादा परेशानी नहीं होती है। भगवान जगन्नाथ, बलराम व सुभद्रा के रथों पर जो घोड़ों की कृतियां मढ़ी जाती हैं। पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है। बलरामजी के रथ रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ जी का रथ लाल और पीला रंग का होता है।
भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है जगन्नाथ रथयात्रा। वैसे तो यह पर्व पूरे देशभर पर्व बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है, लेकिन इस पर्व का अनोखा और खास अंदाज जगन्नाथ पुरी में देखने को मिलता है। पुरी में होने वाले इस उत्सव में सिर्फ देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी काफी संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेने के लिए आते हैं। पुरी का नजारा इस उत्सव पर देखने लायक होता है। लोगों को पैर रखने तक की जगह नहीं मिल पाती है। इस रथयात्रा में भाग लेने से भक्त अपने पापों से मुक्ति पा लेता है। ऐसा भी कहा जाता है जो भी भक्त इस जगन्नाथ जी का रथ खींचता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। स्कन्दपुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
द्वितीया पर प्रारंभ होती है यात्रा :
इस यात्रा में भक्ति रस का अनूठा संगम देखने को मिलता है। हर कोई भक्त कृष्ण भक्ति में लीन दिखाई देता है। बच्चे हो या फिर बूढ़ा, सब कृष्ण की भक्ति में मग्न रहते है।