*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
कन्याकुमारी, भारत के खूबसूरत पर्यटक स्थल में से एक है। यहां बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागन का मिलन भी होता है। कन्याकुमारी भारत के तीर्थ स्थलों में से भी विशेष स्थान रखता है। यहां हर साल लाखों संख्या में श्रद्धालु कन्याकुमारी के दर्शन करने के लिए आते हैं। इस जगह की खूबसूरती को शब्दों में बयां करना भी मुश्किल है। सागर की लहरों में यहां अलग की संगीत के स्वर सुनाई देते हैं। वैसे इस जगह का नाम कन्याकुमारी क्यों पड़ा, इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है, जिसके बारे में हमसे काफी कम लोगों को ही पता होगा। इस लेख के जरिए आज हम जानेंगे क्यों कहा जाता है इस खूबसूरत जगह को कन्याकुमारी।
इस वजह से पड़ा ये नाम :
ऐसा कहा जाता है कि बाणासुर नाम का राक्षस था, जिसने शिव को अपनी तपस्या से खुश कर दिया। वरदान के रूप में उसने मांगा कि उसकी मृत्यु कुंवारी कन्या के अलावा किसी से न हो। शिव ने उसे मनोवांछित वरदान दे दिया। उसी समय भारत एक राजा हुआ करते थे, जिनका नाम भरत था। भरत की आठ पुत्री और एक पुत्र था। राजा ने अपने पूरे साम्राज्य को नौ हिस्सों में बांट रखा था। दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी को शक्ति का अवतार भी माना गया है।
कुमारी भगवान शिव की भक्त थी, इसलिए वे भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करना चाहिती है। जब ये बात शिव को पता चली, तो वह भी विवाह के लिए राजी हो गए और उन्होंने कुमारी से शादी करने की हामी भर दी। जबकि नारद जानते थे कुमारी साक्षात शक्ति का रूप है, इसलिए वे बाणासुर का अंत कुमारी के हाथों से ही करना चाहते थे, लेकिन ये तभी हो सकता था जब कुंवारी का विवाह शिव जी से न हो। इसलिए उन्होंने शिव और कुमारी की शादी में विघ्न डाल दिया। कुमारी से विवाह करने के लिए शिवजी कैलाश से भारत के इस दक्षिण छोर के लिए निकल गए, ताकि वे सुबह वहां पहुंच सके। देवताओं ने छल से रात को ही बुर्गे की बांग लगा दी। शिवजी को लगा शुभ मूर्हत निकल गया। इस वजह से वे रात को ही वापिस कैलाश निकल गए। इसी दौरान बाणासुर को कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला। वह मोहित हो गया और उसने अपना विवाह प्रस्ताव कुमारी तक पहुंचाया। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा दे, तो वह विवाह करेंगी।
दोनों में युद्ध हुआ और बाणासुर मारा गया। इसलिए दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा गया। युद्ध के कारण शिव का विवाह कुमारी से नहीं हो सका और बाद में उसने शिव से विवाह की इच्छा भी त्याग दी। विवाह के लिए जो तैयारियां की गई थीं, वह सब रेत में बदल गई। इस तरह उस जगह को कन्याकुमारी पड़ गया। यहां तट पर कुमारी देवी का मंदिर है, जहां माता पार्वति को कन्या के रूप में पूजा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो दाल चावल विवाह के लिए बनाए गए थे, वे विवाह नहीं हो जाने की वजह से कंकर बन गए।