*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
इस बार खेल में पार्वती जी हार गईं तथा कार्तिकेय शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। इस बात से पार्वति काफी उदास हो गई। पार्वती जी ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र गणेश को बताई तो मातृ भक्त गणोश जी स्वयं खेल खेलने शंकर भगवान के पास पहुंचे। शंकर भगवान के साथ गणेशजी ने खेल खेला और वे जीत गए, लेकिन वे शंकर जी को अपने साथ लेकर नहीं आए। इस बात से माता पार्वति काफी उदास हो गई। अपनी मां को उदास देखकर गणेशजी फिर से शंकर भगवान की खोज में निकल गए। भोलेनाथ से उनकी भेंट हरिद्वार में हुई। उस समय भोले नाथ भगवान विष्णु व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। इधर भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया था। इस बात का पता उनके पुत्र कार्तिकेय को भी था। गणेश जी ने माता के उदास होने की बात भोलेनाथ को कह सुनाई।
इस पर भोलेनाथ बोले,कि हमने नया पासा बनवाया है, अगर तुम्हारी माता पुन खेल खेलने को सहमत हों, तो मैं वापस चल सकता हूं। गणेशजी ने सारी बात माता को सुनाई। पार्वति मां तैयार हो गई। नारद जी ने अपनी वीणा आदि सामग्री भोलेनाथ को दे दी। इस खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फैंकने के बाद गणेश जी समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया। इस छल की वजह से माता पार्वति को भगवान शिव पर क्रोध आ गया।
उन्होंने भोलेनाथ को श्राप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा। नारद जी को कभी एक स्थान पर न टिकने का अभिशाप मिला। कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने हमेशा बाल रूप में रहने का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु को श्राप दिया कि यही रावण तुम्हारा शत्रु होगा तथा रावण को श्राप दिया कि विष्णु ही तुम्हारा विनाश करेंगे।
इसलिए माता पार्वती ने दिया शिव, विष्णु और कार्तिकेय को श्राप :
भोलेबाबा और माता पार्वति के बीच अत्यंत प्यार है, लेकिन उन्होंने भी अपनी पत्नी के साथ एक छल किया था। इसकी वजह से उन्हें अपनी पत्नी से श्राप मिला। इतना ही नहीं, इस छल में उनकी हिस्सेदार भगवान विष्णु, नारद और उनके पुत्र कार्तिकेय भी थे। इसलिए उन्हें भी मां के श्राप को भुगतना पड़ा। इसके पीछे भी एक रोचक कथा है, जिसका वर्णन हमारे शास्त्रों में किया गया है। कथा के अनुसार भगवान शंकर ने माता पार्वती के साथ चौसर खेलने की अभिलाषा प्रकट की। इस खेल में माता पार्वति ने शंकर भगवान को हरा दिया। भोलेबाबा अपना सबकुछ हार गए। यहां तक की अपने कपड़े भी, इसलिए उन्हें पत्ते पहनकर जाना पड़ा। जब ये बात उनके पुत्र कार्तिकेय को पता चली तो वे माता के साथ चौसर खेलने गए।इस बार खेल में पार्वती जी हार गईं तथा कार्तिकेय शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। इस बात से पार्वति काफी उदास हो गई। पार्वती जी ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र गणेश को बताई तो मातृ भक्त गणोश जी स्वयं खेल खेलने शंकर भगवान के पास पहुंचे। शंकर भगवान के साथ गणेशजी ने खेल खेला और वे जीत गए, लेकिन वे शंकर जी को अपने साथ लेकर नहीं आए। इस बात से माता पार्वति काफी उदास हो गई। अपनी मां को उदास देखकर गणेशजी फिर से शंकर भगवान की खोज में निकल गए। भोलेनाथ से उनकी भेंट हरिद्वार में हुई। उस समय भोले नाथ भगवान विष्णु व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। इधर भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया था। इस बात का पता उनके पुत्र कार्तिकेय को भी था। गणेश जी ने माता के उदास होने की बात भोलेनाथ को कह सुनाई।
इस पर भोलेनाथ बोले,कि हमने नया पासा बनवाया है, अगर तुम्हारी माता पुन खेल खेलने को सहमत हों, तो मैं वापस चल सकता हूं। गणेशजी ने सारी बात माता को सुनाई। पार्वति मां तैयार हो गई। नारद जी ने अपनी वीणा आदि सामग्री भोलेनाथ को दे दी। इस खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फैंकने के बाद गणेश जी समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया। इस छल की वजह से माता पार्वति को भगवान शिव पर क्रोध आ गया।
उन्होंने भोलेनाथ को श्राप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा। नारद जी को कभी एक स्थान पर न टिकने का अभिशाप मिला। कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने हमेशा बाल रूप में रहने का श्राप दे दिया। भगवान विष्णु को श्राप दिया कि यही रावण तुम्हारा शत्रु होगा तथा रावण को श्राप दिया कि विष्णु ही तुम्हारा विनाश करेंगे।