*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भैरव देव का जन्म हुआ था। इसलिए इसे भैरव जयंती और काल भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है, जिन्हें शिवजी का एक अवतार माना जाता है।
भैरव तांत्रिकों के देवता कहे जाते हैं। इसलिए भैरव बाबा की पूजा अर्चना रात को करनी चाहिए। इस दिन रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुन कर जागरण का आयोजन भी करना चाहिए। कालभैरों की सवारी कुत्ता है। इसलिए इस दिन कुत्ते को भोजन करवाना काफी शुभ माना जाता है। मध्य रात्रि में शंख, नगाड़ा, घंटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ-साथ देवी कालिका की पूजा-अर्चना भी करनी चाहिए। भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अनेक समस्याओं का निदान होता है।
कालाष्टमी की कथा के अनुसार एक समय विष्णु और ब्रह्मा के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। यह विवाद काफी ज्यादा बढ़ गया था। जब कोई हल नहीं निकला तो सभी देवता गण शिवजी के पास गए। समाधान के लिए भगवान शिव एक सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में महत्वपूर्ण ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित थे।
सभा में लिए गए एक निर्णय लिया गया। इस निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन ब्रह्मा जी इस निर्णय से संतुष्ट नहीं होते। वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित शिव यह अपमान सहन नहीं कर पाते हें और ब्रह्मा द्वारा अपमानित किए जाने पर उन्होंने रौद्र रुप धारण कर लेते हैं। भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। भैरव जी श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दण्ड होने के कारण वे दण्डाधिपति कहे गये। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उनके इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए। भैरव ने क्रोध में ब्रह जी का एक सिर काट दिया, तब से ब्रह्मा जी के चार मुख ही है। जब ब्रह्मा जी ने भैरव जी से माफी मांगी तब उनका गुस्साशांत हुआ।
हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भैरव देव का जन्म हुआ था। इसलिए इसे भैरव जयंती और काल भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है, जिन्हें शिवजी का एक अवतार माना जाता है।
ऐसे करें पूजा अर्चना :
जो कोई भी व्यक्ति इस दिन कालभैरव की पूजा अर्चना सच्चे मन से करता है, उसे सभी दुख नष्ट हो जाते हैं। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को निरोगी काया मिलती है और उसे हर जगह सफलता प्राप्त होती है। कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से अशुभ कर्मों से भी मुक्ति मिल जाती है और क्रूर ग्रहों के प्रभाव से छुटकारा मिलता है।भैरव तांत्रिकों के देवता कहे जाते हैं। इसलिए भैरव बाबा की पूजा अर्चना रात को करनी चाहिए। इस दिन रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुन कर जागरण का आयोजन भी करना चाहिए। कालभैरों की सवारी कुत्ता है। इसलिए इस दिन कुत्ते को भोजन करवाना काफी शुभ माना जाता है। मध्य रात्रि में शंख, नगाड़ा, घंटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ-साथ देवी कालिका की पूजा-अर्चना भी करनी चाहिए। भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अनेक समस्याओं का निदान होता है।
ये हैं व्रत कथा :
सभा में लिए गए एक निर्णय लिया गया। इस निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन ब्रह्मा जी इस निर्णय से संतुष्ट नहीं होते। वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित शिव यह अपमान सहन नहीं कर पाते हें और ब्रह्मा द्वारा अपमानित किए जाने पर उन्होंने रौद्र रुप धारण कर लेते हैं। भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। भैरव जी श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दण्ड होने के कारण वे दण्डाधिपति कहे गये। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उनके इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए। भैरव ने क्रोध में ब्रह जी का एक सिर काट दिया, तब से ब्रह्मा जी के चार मुख ही है। जब ब्रह्मा जी ने भैरव जी से माफी मांगी तब उनका गुस्साशांत हुआ।