पहले गणेशजी का मुख आम मनुष्य ही तरह ही था। देवी पार्वती ने एक बार अपने शरीर के मैल और उबटन से एक बालक का निर्माण कर उसमें प्राण डाल दिए और कहा कि तुम मेरे पुत्र हो। देवी ने पुत्र गणेश से यह भी कहा कि हे पुत्र! मैं स्नान के लिए भोगावती नदी जा रही हूं। कोई भी अंदर न आने पाए। जब शिवजी माता पार्वती से मिलने आए तो उन्होंने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया, इस बात से शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उनका मुख काट दिया। इसके बाद माता पार्वती ने उन्हें फिर से उन्हें जीवित करने को कहा तो शिवजी हाथी के बच्चे का सिर काट के लाए और गणेशजी के सिर से जोड़ दिया। उनके दो दंत भी थे, लेकिन परशुराम से युद्ध के दौरान उन्हें अपना एक सिर खोना पड़ा। तब से ही वे एक दंत कहलाने लगे।
गणेशजी की शक्ल हाथी की जैसी थी, इस वजह से उनसे कोई भी कन्या विवाह करने को राजी नहीं होती थी। इस बात से गणेशजी काफी दुखी थे। इसलिए उन्होंने मन ही मन में ठान लिया कि वे किसी का भी विवाह नहीं होने देंगे। इस कार्य में उनका साथ दिया उनके वाहन चूहे ने। जब भी किसी देवता का विवाह होता तो उनका चूहा मंडप को खोखला कर देता। चूहे हर जगह कोई न कोई विघ्न डाल देता। इस बात से परेशान होकर सभी देवता शिवजी के पास गए, जब शिवजी को भी इस समस्या का कोई हल नहीं मिला तो वे सब ब्रहृाजी के पास गए।
ब्रह्माजी ने निकाला हल
जब सभी देवता ब्रह्माजी के पास पहुंचे तो वे अपनी तपस्या में लीन थे। सभी देवताओं ने ब्रहृा जी से अपनी समस्या कही। ब्रह्माजी ने कहा कि वे इस समस्या का जल्द हल निकाल लेंगे। इसके बाद सभी देवता अपने घर लौट गए। इसके बाद ब्रह्माजी ने अपनी साधना से दो कन्याएं ऋद्धि और सिद्धि को अवतरित किया। दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्री थीं। उन दोनों को लेकर ब्रह्माजी गणेशजी के पास पहुंचे और कहा वह उन्हें शिक्षा दें। इस बात के लिए गणेशजी तैयार हो गए। जब भी चूहा गणेशजी के पास किसी के विवाह की सूचना लाता तो ऋद्धि और सिद्धि ध्यान बांटने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देतीं। इस वजह से सारे विवाह आराम से होने लगे। जब ये बात गणेशजी को पता चली तो वे गुस्से में ब्रह्माजी के पास गए। तब
ब्रह्माजी ने कहा कि, आपने स्वयं इन्हें शिक्षा दी है। मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है। आप इनसे विवाह कर लें। इस तरह ऋद्धि और सिद्धि से गणेशजी का विवाह हो गया। और फिर बाद में गणेश जी के शुभ और लाभ दो पुत्र भी हुए।
