भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त अनेक प्रकार की भक्ति करते हैं। भगवान शिव की वर्ष में दो बार शिवरात्रि आती हैं। फाल्गुन मास की शिवरात्रि के बाद शिव भक्तों के लिए दूसरा अवसर होता हैं उनको प्रसन्न करने के लिए। सावन का महीना तो वैसे भी शिव जी का सबसे अधिक प्रिय महीना होता हैं और उनके भक्त उनको और अधिक प्रसन्न करने के लिए एक पावन करते हैं। और यह पावन पद यात्रा होती हैं कांवड़ यात्रा।
शिवजी का जलाभिषेक के लिए लाते कांवड़ में जल -
शिवजी का जलाभिषेक करने के लिए उनके भक्त अनेक जगहों से गंगाजल लाते हैं। शिवरात्रि में क्योकि दो बार आती हैं तो दोनों ही अवसरों पर उनके भक्त पैदल यात्रा करके कांवड़ में जल रखकर लाते हैं। शिवभक्त गोमुख, ऋषिकेश और हरिद्वार तक पैदल जाकर गंगाजल लाते हैं। इस पावन पदयात्रा को ही कांवड़ यात्रा कहते हैं।
सावन का महीना अपने साथ बहार लेकर आता हैं। सावन के महीने में सबसे ज्यादा बरसात का मौसम होता हैं तो शिव के श्रद्धालुओं की संख्या थोड़ी बढ़ जाती हैं। सावन के महीने में सबसे ज्यादा भक्त कांवड़ लेने के लिए जाते हैं। शिव भक्तो के लिए जगह जगह पर प्रशासन द्वारा और साधारण नागरिकों के द्वारा शिविर लगाए जाते हैं। कांवड़ यात्रा के भिन्न भिन्न रूप होते हैं तो हैं की कांवड़ लाने का क्या महत्व होता हैं।
शिव भक्तों द्वारा लायी जाने वाली कांवड़ का महत्व -
शिवजी बहुत ही ज्यादा दयालु देवता हैं। वो बहुत ही जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं ऐसी कारण शिव जी को भोलेनाथ के नाम से भी पुकारा जाता हैं। प्रभु भोल्रनाथ को प्रसन्न करना कोई कठिन बात नहीं हैं। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए यदि उनके भक्त केवल सच्चे मन से भक्ति कर ले तो काफी हैं। भगवन शिव केवल सच्ची भक्ति से ही अपनी कृपा बरसा देते हैं। एक उपाय और हैं शिव जी को प्रसन्न करने का फाल्गुन एवं सावन दोनों ही महीनो में शिव भक्त कांवड़ लाते हैं। करोड़ो की संख्या में शिव भक्त कांवड़ लाते हैं। मान्यता यह हैं की जो भी भक्त सच्चे मन से कांवड़ लाता हैं उसके सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। यह पवित्र पदयात्रा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली हैं। शिव जी अपने भक्तो पर इतने से ही अन्नत कृपा बरसाते हैं।
कहाँ से प्रारम्भ हुई ये परम्परा -
हिन्दू धर्म शास्त्रों में बताया जाता हैं की परशुराम जी भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे वो सदैव शिव भक्ति में लीन रहते थे। उन्होंने ही सर्वप्रथम कांवड़ में जल लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। और यह परम्परा सबसे पहले सावन के पवित्र महीने में प्रारम्भ हुई थी।
इससे जुड़ा एक दूसरा मत भी हैं की जब समुन्द्र मंथन हुआ था तब भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में धारण किया था जिसके कारण भगवान शिव को नीलकंठ भी बोला जाता हैं। विष को कंठ में धारण करने के बाद भगवान शिव के ऊपर नकारात्मक प्रभाव बढ़ने लगने कारण भगवान शिव ने चंद्र देवता को अपने सर पर धारण किया और सभी देवी देवताओ ने भगवान शिव का गंगाजल से जलाभिषेक किया और यह सब घटना सावन के महीने में ही हुई थी।
कांवड़ के प्रकार -
शिव भक्त अपने श्रद्धा के अनुसार कांवड़ लाते हैं। कांवड़ कई प्रकार से लायी जा सकती हैं। यंहा पर दो प्रकार की कांवड़ के विषय में हम आपको बताएंगे -
पैदल कांवड़ -
पैदल कांवड़ लोग अधिकतर व्यक्तिगत रूप से लाते हैं। कभी कभी लोग अपने किसी प्रियजन के नाम से भी कांवड़ लेकर आते हैं। कांवड़ बहुत ही सजी धजी एक पालकी होती हैं जिसमे गंगाजल रखा होता हैं।
डाक कांवड़ -
डाक कांवड़ एक समूह लेकर आता हैं। यह कांवड़ सबसे जल्दी लायी जाती हैं जैसे की इसके नाम से भी पता चल रहा हैं। डाक कांवड़ रस्ते में रूकती नहीं हैं इस कांवड़ को लगातार चलकर लाया जाता हैं। इस कांवड़ को वैसे तो भागकर लाया जाता हैं यदि कोई व्यक्ति थक जाता हैं तो वो कांवड़ समूह के किसी दूसरे व्यक्ति को दे देता हैं।