केवल सावन के महीने में होती हैं बालू के शिवलिंग की पूजा। बालू से बानी शिवलिंग के पीछे वर्षों पुराना एक रहस्य हैं। यह पूजा कानपूर के एक प्रसिद्ध मैक्सर घाट पर होती हैं। कानपूर का मैक्सर घाट भारत के प्रसिद्ध और प्राचीन घाटों में से एक घाट हैं। इस घाट पर भी अनेक ऋषि मुनि आते हैं।
इस घाट पर बालू से बानी शिवलिंग की पूजा होती हैं और यह शिवलिंग 3 फीट ऊँची होती हैं जिसको बनाने में 70 फीसदी बालू और 30 फीसदी मिट्टी का प्रयोग किया जाता। यह बालू की शिवकिंग केवल सावन के महीने के लिए बनाई जाती हैं। वर्षों से सावन की पूजा के साथ मान्यता जुडी हुई हैं। सबसे खास बात तो यह हैं की सावन के 2 दिन बाद शिवलिंग को विखंडित कर दिया जाता हैं।
बालू शिवलिंग की परम्परा कहा से प्रारम्भ हुई -
जैसा की अभी बताया की कानपूर का मैक्सर घाट प्राचीन घाटों में से एक हैं तो यंहा पर वर्षों पूर्व एक सन्यासी आये थे उन्होंने ही इस घाट पर बालू शिवलिंग की रचना की थी। वह सन्यासी उन्नाव के रहने वाले थे लेकिन जब वह यंहा पर आये तो कभी वापस लौटकर नहीं गए और यंहा के ही बनकर रह गए। इन महान पुरुष को भोला बाबा के नाम से जाना जाता था।
बताया जाता हैं की वो शिवभक्त होने के साथ साथ सिद्धपुरुष भी थे। वो शिव की पूजा प्रीतिदिन करते थे परन्तु कभी भी किसी मंदिर में नहीं जाते थे। गंगा जी में स्नान कर वंहा पर ही एक बालू की शिवलिंग बना लेते थे और पूजा अर्चना के बाद शिवलिंग को गंगा जी में ही बहा देते थे।
कोई नहीं जान पाया बालू शिवलिंग बनाने का रहस्य -
बालू शिवलिंग को बनाने और सावन के बाद उसको विखंडित करने का रहस्य कोई नहीं जान पाया हैं। बालू से इस शिवलिंग को बनाने और उसको प्रवाहित करने के समय इसको किसी को भी देखने की इजाज़त नहीं हैं। क्योकि भोला बाबा सुबह सुबह इस शिवलिंग का निर्माण करते थे और देर रात को गंगा जी में विसर्जित कर देते थे। बाबा कभी भी किसी से भी नहीं लेते थे और न ही कभी दान का खाते थे।
क्यों नहीं टपकता इस शिवलिंग पर गंगाजल -
क्योकि यह शिवलिंग बालू की बानी होती हैं तो इस शिवलिंग पर गंगाजल नहीं टपकता हैं। स्थानीय लोगो के साथ साथ आस पास के गाँव के लोग भी इस बालू शिवलिंग की पूजा करने आते हैं। मान्यता हैं की सुबह सुबह इस शिवलिंग के दर्शन करने मात्र से दिन बहुत ही मंगलमय रहता हैं। पूजा में किसी भी तरल पदार्थ शख्त मनाई हैं। शिवलिंग पर भक्तों के द्वारा गंगाजल, दूध नहीं चढ़ाया जाता हैं। क्योकि इस शिवलिंग को बनाने के लिए गंगाजल का ही प्रयोग किया जाता हैं।
भोला बाबा के द्वारा सुनाई जाने वाली शिव कहानी -
भोला बाबा स्वयं को उन्नव का रहने वाला बताते थे परन्तु उनका घर किस गाँव में था ये उन्होंने कभी नहीं बताया था। वो बहुत ही कम बोलते थे। शाम को घाट पर भक्तों की भीड़ हो जाती थी। क्योकि भोला बाबा सांय कल की आरती के बाद सभी को शिव जी की कहानिया सुनाते थे।