Culture and heritage

इस मंदिर में होती है रावण की पूजा !! Temple where Ravana is worshiped



जब भी रावण का नाम लिया जाता है, तो उसके प्रति श्रद्धा नहीं बल्कि हर भक्त में गुस्सा ही नजर आता है। हर साल हमारे देख में दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया जाता है और रावण के पुतले का दहन किया जाता है। वैसे देखा जाए तो रावण महाज्ञानी और पंडित था। उसके पास कई शक्तियां भी थी, इसलिए देवों को भी उनके सामने आने से डर लगता है, लेकिन उसके कार्य अच्छे नहीं थे।  वैसे तो रावण में लाख बुराइयां थी, लेकिन वे शिवजी का परम भक्त था। रावण ने शिवजी की घोर तपस्या की थी और अपने शीश तक काटकर अर्पण कर दिया। हमारे देश में रावण को पूजा नहीं जाता है, लेकिन एक मंदिर ऐसा भी है। जहां रावण की पूजा अर्चना प्रतिदिन की जाती है। इस मंदिर में रावण की मूर्ति है, जहां रोज रावण की पूजा होती है। इतना ही नहीं, यहां भोलेनाथ का मंदिर भी है। भोलेनाथ से पहले रावण को पूजा जाता है।  यह मंदिर उदयपुर जिले की झाड़ौल तहसील में है। यहां आवारगढ़ की पहाडिय़ों में भगवान कमलनाथ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। 


ऐसा हुआ मंदिर का निर्माण 

इस मंदिर का निर्माण कैसा हुआ, इसके पीछे हमारे शास्त्रों में कई कहानियों का वर्णन किया गया है। कहा जाता है कि इस मंदिर को रावण ने स्थापित किया था। इस जगह पर रावण ने भोलेनाथ की तपस्या की थी और अपना शीश काटकर यहां एक अग्निकुंड को समर्पित कर दिया था। इस जगह में रावण ने करीब बारह साल तक शिवजी की कठोर तपस्या की थी। वे रोज शिवजी सौ कमल के फूल चढ़ाते थे। रावण की तपस्या देखकर सारे देव परेशान हो उठे। इसलिए वे ब्रह्मा जी के पास गए। जब रावण पूजा करने बैठा तो ब्रह्मा जी ने छल से एक फूल गायब कर दिया। जब रावण को फूल कम पड़ा तो उन्होंने अपना शीश काटकर शिवजी को चढ़ा दिया। इस तपस्या से भगवान शिव प्रसंन हुए थे और उन्होंने रावण को एक अनोखा वरदान दिया था। वरदान के अनुसार रावण की नाभि में अमृतकुंड का निर्माण कर दिया। इससे रावण अजेय हो गया। जब तक कोई उसकी नाभि पर दिव्य शक्ति से प्रहार नहीं करता, उसका कुछ नहीं बिगड़ता। इसलिए श्रीराम ने इस राज का पता लगाया और उसकी नाभि पर ही प्रहार किया। तब जाकर रावण का अंत हुआ।  

 रह जाती है पूजा अधूरी 

इस मंदिर से जुड़ी कई बातें भी हैं। ऐसा कहा जाता है जो भी भक्त रावण की पूजा किए बिना भगवान शिव का पूजा अर्चना करता है, तो उसकी पूजा अधूरी मानी जाती है और उसकी मनचाही वस्तु भी नहीं मिलती है। इसलिए यहां आने वाले हर भक्त को रावण की पूजा करना अनिवार्य होता है। 

 पूरे विश्व में है फैमस 

ये मंदिर पूरे विश्व में फैमस है। यहां रावण की विशाल मूर्ति स्थापित है।  सन 1577  में  महाराणा प्रताप ने होली जलाई थी। उसी समय से समस्त झालौड़ में सर्वप्रथम इसी जगह होलिका दहन होता है।  महाराण प्रताप के अनुयायी झालौड़ के लोग होली के अवसर पर पहाड़ी पर एकत्र होते है, जहां कमलनाथ महादेव मंदिर के पुजारी होलिका दहन करते है। इसके बाद ही समस्त झालौड़ क्षेत्र में होलिका दहन किया जाता है।  



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