जानिए भगवान् शिव के साथ-साथ किसने पिया समुद्रमंथन से निकला महाघातक विष :
दोस्तों वैसे तो आप को सभी बात अच्छी तरह से पता है कि एक बार समुद्रमंथन के समय देवताओ और असुरों के मध्य समुद्र में से जो भी रत्न अथवा वस्तु निकली थी वह देवताओं और असुरों ने आपस में बाँट ली थी परन्तु समुद्रमंथन के दौरान हलाहल नाम का विष जो अत्यंत ही घातक था तो श्रष्टि की रक्षा हेतु भगवान् शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण किया था लेकिन आप को यह बात नहीं पता होगी कि भगवान् शिव के साथ साथ किसने और उस विष का पान किया था? तो आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि भगवान् शिव के किस भक्त ने उनके साथ यह विषपान किया था !
समुद्रमंथन के दौरान हलाहल विष के निकलने से देवताओं और असुरों में हाहाकार होना:
यह महान शिव भक्त और कोई नहीं बल्कि भगवान् भोले नाथ के परम भक्त और उनके साथ हमेशा उनके ही सम्मुख विराजने वाले शिवगणों में प्रमुख नंदीजी महाराज हैं ! और हम आपको यह भी बताते हैं कि किस कारणवश उनको यह विषपान करना पड़ा? बात जब की है जब असुरों और देवताओं के द्वारा किये जा रहे समुद्रमंथन से जो भी रत्न अथवा वस्तु निकलती तो उसको आपस में बाँट लिया जाता था ! इसी तरह जब सभी रत्नों व वस्तुओं का बँटवारा हो गया तो अंत समुद्र में से हलाहल नामक अत्यंत घातक विष निकला तो सभी देवता और असुरों में हाहाकार मच गया और सब चिंता में डूब गए क्योंकि किसी में भी उस विष को ठिकाने लगाने की हिम्मत नहीं थी! क्योंकि यदि उस विष की एक बूँद भी पृथ्वी पर गिरने से सम्पूर्ण श्रष्टि का विनाश हो जाता !
देवताओं और असुरों के आग्रह पर श्रष्टि को विनाश से बचाने हेतु भगवान् शिव का विषपान करना:
अतः सभी देवता और असुरों ने भगवान् शिव का आह्वान किया और इस मुसीबत से छुटकारा दिलाने का आग्रह किया तब भगवान् भोले नाथ ने जग कल्याण हेतु विषपान किया तो माँ पार्वती ने उस विष को भगवान् शिव के कंठ में ही रोक लिया लेकिन इस विष की कुछ बूंदे फिर भी टपक गयी!
विष की बूंदों का छलकना तथा शिव के परमभक्त नंदी का विष ग्रहण करना:
तो तुरंत ही बिना सोचे समझे भगवान् भोलेनाथ के परमभक्त और उनके गण नंदी ने अपनी जीभ से चाट कर साफ़ कर दिया और क्योंकि वह विष बहुत ही घातक था देवता और असुर दोनों ही नंदी को देखकर हैरान रह गए कि नंदी ने जान-बूझकर इस विष को क्यों ग्रहण किया। सभी यही सोच रहे थे कि शिव तो भगवान हैं, साथ ही उनके पास माता पार्वती का साथ भी है। लेकिन नंदी!! इस पर नंदी ने जवाब दिया कि जब उनके स्वामी ने इस विष को ग्रहण किया है तो उन्हें तो करना ही था।
भगवान् शिव का नंदी पर प्रसन्न होना तथा शिवगणों में विशेष दर्जा प्राप्त होना:
नंदी का यह समर्पण देखकर शिव भी प्रसन्न हुए और कहा कि नंदी मेरे सबसे बड़े भक्त हैं इसलिए मेरी सभी ताकतें नंदी की भी हैं। अगर पार्वती की सुरक्षा मेरे साथ है तो वह नंदी के साथ भी है। इस घटना के बाद शिव और नंदी का साथ अत्याधिक मजबूत हो गया। शिव और नंदी के बीच इसी संबंध की वजह से शिव की मूर्ति के साथ नंदी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। ऐसा माना जाता है कि शिव तो हमेशा ध्यान में लीन होते हैं, वह हमेशा समाधि में रहते हैं इसलिए उनके भक्तों की आवाज उन तक नंदी ही पहुंचाते हैं। नंदी के कान में की गई प्रार्थना नंदी की अपने स्वामी से प्रार्थना बन जाती है और वह शिव को इसे पूरा करने के लिए कहते हैं। नंदी की प्रार्थना शिव कभी अनसुनी नहीं करते इसलिए वह जल्दी पूरी हो जाती है।