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हर गुरुवार ज़रूर पढ़ें सत्यनारायण जी की आरती | The must read Satyanarayan ji ki Aarti



हिन्दू धर्म में सर्वपालक की भूमिका भगवान विष्णु को दी गयी है | वैकुण्ठ वासी भगवान विष्णु ने अलग अलग समय काल में अलग अलग रूप धरकर पृथ्वी पर जन्म लिया और अपने भक्तों के दुःख दूर किये | कलयुग में भगवान ने  प्रभु सत्यनारायण जी के रूप में अपने भक्तों के दुःख दूर करने का प्रयास किया | तो आइये साथ पढ़ते है सत्यनारायण जी की आरती और अपने सारे दुःख प्रभु के हवाले कर देते है |



सत्यनारायण जी की आरती :

जय लक्ष्मी रमणा, श्री लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी जन-पातक-हरणा।। जय..

रत्नजटित सिंहासन अद्भुत छबि राजै।
नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजै।। जय..

प्रकट भये कलि कारण, द्विज को दरस दियो।
बूढ़े ब्राह्मण बनकर कंचन-महल कियो।।जय.।।

दुर्बल भील कठारो, जिनपर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा, जिनकी बिपति हरी।। जय..

वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं।
सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर अस्तुति कीन्हीं।। जय..

भाव-भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो।
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो।। जय..

ग्वाल-बाल सँग राजा वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीन्हों दीनदयालु हरी।। जय..

चढ़त प्रसाद सवायो कदलीफल, मेवा।
धूप-दीप-तुलसी से राजी सत्यदेवा।। जय..

श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावै।
तन-मन-सुख-सम्पत्ति मन-वांछित फल पावै।।



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