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नीति पहले , राजनीति बाद में ||Short stories: Rajvaidh Charak and his philosophy of life



Rajvaidhya Charak and his philosophy of life 

राजवैध चरक की ख्याति दूर दूर तक फ़ैल चुकी थी. उनको राजाज्ञा प्राप्त थी की वे किसी भी स्थान में बेरोक टोक जा सकते थे और जिस वनस्पति की उन्हें आवश्यकता हो, वे उसे बिना उसके स्वामी  स्वीकृति के ले सकते थे. वे सदा नयी नयी जड़ी बूटियों का परिक्षण करते थे और नयी नयी औषधियों  का निर्माण उनके आश्रम में हुआ करता था.

एक दिन अपने एक प्रमुख शिष्य  सोम शर्मा के साथ राजवैध चरक अपने आश्रम से दूर एक वन में भ्रमण कर रहे थे. वन खण्ड के छोर पर एक  खेत में उन्हें विचित्र फूल दिखाई दिया। वे उसे एकटक निहारने लगे. उनकी तीर्व अभिलाषा उसे लेने की हो गई. उनका शिष्य सोमशर्मा इसे समझ गया और बोला , गुरुदेव अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं ये पुष्प तोड़ लाऊ?

राजवैध चरक बोलते है की वत्स सोम खेत  के स्वामी की आज्ञा के बिना पुष्प तोडना चोरी है.



सोम बोलते है की गुरुदेव आपको राजाज्ञा प्राप्त है की आप स्वामी की आज्ञा के बिना कोई भी बनस्पति तोड़ सकते हो.

राजवैध चरक बोलते है, वत्स तुम ठीक कहते हो पर राजाज्ञा और नैतक आचरण में फर्क होता है.राजाज्ञा से मुझे राजदंड नहीं  मिलेगा लेकिन नैतिक दृष्टि से मैं चोरी का अपराधी रहूँगा और पाप दंड मिलेगा। नैतिक आचरण  की रक्षा करना राजाज्ञा से अधिक महत्वपूर्ण है।

शिष्य सोमशर्मा चुप हो गया. फिर वे खेत का पता लगाते लगाते दूर एक गांव में गए. वहां उस खेत की आज्ञा प्राप्त कर राजवैध चरक उस पुष्प को लाये और उस पर अनुसंधान किया।

आश्रमवासियों ने सीख लिया की नैतिक आचरण की रक्षा जीवन की सबसे बड़ी उप्लभ्दी है.







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