हिन्दू धर्म के त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से अगर किसी देवता ने धरती के उद्धार के लिए सबसे ज्यादा मानव के रूप में अवतार लिया है तो वो हैं सर्वपालक, तारणहार भगवान विष्णु | भगवान विष्णु के दशावतार के बारे में हम सब थोड़ा-थोड़ा जानते हैं पर उनके इन अवतारों को लेने के पीछे की असल कहानी हम सबको नहीं पता | तो आइये आज आपको अवगत कराते हैं भगवान विष्णु के प्राथमिक मत्स्य अवतार के बारे में |
क्यों लेना पड़ा मत्स्य अवतार ?
ब्रम्हांड के पुनः सृजन से पहले ब्रह्मा जी के मुख से वेदों का ज्ञान निकला | इस ज्ञान को हयग्रीव नाम के एक असुर ने चुरा लिया | हयग्रीव एक ऐसा असुर था जिसका सर घोड़े का था और धड़ मनुष्य का | उसके ऐसे कृत्य से ब्रह्मा जी चीर निद्रा में चले गए और धरती का संतुलन बिगड़ गया | तब सृष्टि को सुचारू रूप से चलाने और सुरक्षित रखने के लिए भगवान् विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया |
मत्स्य अवतार कथा :
राजा सत्यव्रत रोज की भाँती जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दे रहे थे | इतने में उनके सामने एक छोटी सी मछली आई | उसने राजा से विनम्रता से आग्रह किया की वो उसे अपने कमंडल में शरण दे दें | ये सुनकर राजा ने उस मछली को उठा अपने कमंडल में डाल दिया | कमंडल में डालते ही उस मछली का आकार कमंडल के सामान हो गया | राज महल पहुँच कर राजा ने मछली को एक पात्र में डाल दिया | पात्र में डालते ही मछली का आकार उस पात्र के बराबर हो गया | तब राजा सत्यव्रत ने उस मछली को समुद्र में डालने को कहा तो समुद्र में डालते ही वो मछली समुद्र के बराबर हो गयी और अपने असली रूप में आई |
भगवान् विष्णु का ये रूप देखकर राजा अभिभूत हो उठा | तब भगवान् विष्णु ने अपने अवतार का कारण बताया | उन्होंने एक विशाल नाव का वर्णन किया जिसमे राजा को पृथ्वी की सारी अनमोल वस्तुओं को भरना था |
शेषनाग को रस्सी के सामान प्रयोग कर भगवान मत्स्य रूप में ही उस नाव को सुमेरु पर्वत तक ले गए | इससे पहले उन्होंने एक युद्ध में हयग्रीव राक्षस का वध करके उससे बालक रुपी वेदों को भी छुड़ाया और ब्रह्मा जी को पुनः लौटा दिया |
इस प्रकार भगवान् के मत्स्य अवतार ने पृथ्वी की उन सभी अनमोल वस्तुओं को सुरक्षित रखा जो आगे के सृजन में काम आई |