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कौन था महिषासुर ?
नवरात्र के समय आपने पंडालो में मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ आपने भैंस के शरीर से निकल रहे एक मानव आकृति को देखा होगा | इसके हाथों में कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्र होते हैं जिनसे यह माता से युद्घ कर रहा होता है | इस असुर का नाम महिषासुर है | दुर्गासप्तशती के तीसरे अध्याय में महिषासुर के वध की कथा है |
कैसे हुआ महिषासुर का वध ?
महिषासुर एक शक्तिशाली असुर था इसने अपने बल से देवताओं का साम्राज्य छीन लिया और स्वयं इन्द्र बनकर स्वर्ग पर राज करने लगा | देवतागण ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शरण में गए | महिषासुर को वरदान प्राप्त था कि कुंवारी कन्या के हाथों ही उसका वध होगा | इसलिए तीनों देवों ने मिलकर अन्य देवाताओं की सहायता से एक नारी रूप को प्रकट किया और अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए | देवी ने महिषासुर को युद्घ के लिए ललकारा और रण में महिषासुर का वध किया, इसलिए माता का एक नाम महिषासुरमर्दनी भी है |
महिषासुर के वध स्थान पर है एक शक्तिपीठ :
देवी ने जिस स्थान पर महिषासुर का वध किया था वह स्थान देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक है | यह स्थान हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित नैना देवी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है | पुराणों की कथा के अनुसार यहां पर देवी सती के नैन गिरे थे | इसलिए यह नैनाशक्ति शक्तिपीठ कहलाया |
कैसे हुई शक्तिपीठ की स्थापना ?
इस स्थान पर शक्तिपीठ होने की जानकारी सबसे पहले एक चरवाहे को हुई जो हर दिन यहां गाय चराने आता था | इसने देखा कि एक गाय हर दिन नियम स्थान पर जाकर खड़ी हो जाती है और उसके स्तन से दूध की धारा बहने लगती है | कई दिनों तक ऐसा ही होता रहा तब नैना देवी चरवाहे के सपने में आई और बताया कि जहां आकर गाय के स्तन से दूध की धारा बहने लगती है वहां मेरा पिण्ड है | मै नैना देवी हूं | चरवाहे ने यह बात उस समय के राजा बीरचंद को बताई | चरवाहेकी बात सुनकर महाराजा स्वयं उस स्थान पर गए और अद्भुत नजरा देखकर आत्मविभोर हो गए | राजा बीरचंद ने नैना देवी का मंदिर बनवाया |
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