मतलब आपने जितने भी खूबसूरत चेहरे देखे होंगे वो सारे उस देवता के आगे फीके है | आज आप किसी भी चेहरे को देख कर जिसे प्यार हो जाना कहते हो वो पूरा डिपार्टमेंट इस देवता के अंडर था | शिव पुराण में तो उनकी सुन्दरता का वर्णन तो कुछ ऐसा लिखा मिलता है की अगर ये देव किसी भी स्त्री, पुरुष, अश्व, गंधर्व, किन्नर को देखकर मात्र मुस्कुरा भर दे तो इनकी मुस्कान को देखने वाला इनके प्रेम में इनका दास हो जाना चाहता था | जी हाँ तो कुछ ऐसी ही शक्ति और महिमा थी प्रेम और काम के देवता कामदेव की | ये सारी दुनिया में सिर्फ प्रेम के विस्तार के लिये जाने जाते थे | फिर ऐसा इन्होने क्या किया जिसकी वजह से भगवान शंकर ने इन्हें भस्म कर दिया ? तो आइये जानते है इस रोचक कथा के बारे में |
कामदेव ने ऐसा क्या किया जो भोले ने उन्हें भस्म किया ?
माता सती के आत्मदाह के बाद भगवान् शंकर घोर तपस्या में लीन हो गए | जिसकी वजह से सृष्टि का संचार ठप पड़ गया | तभी भगवान ब्रह्मा से वरदान पा कर तारकासुर दिन प्रतिदिन अपना उत्पात बढ़ाने लगा | उसने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान माँगा था पर ब्रह्मा जी ने उसे मन कर दिया और ये वरदान दिया की उसका वध सिर्फ शिव पुत्र द्वारा होगा |
इस वजह से अब भगवान् शिव का माँ पार्वती के साथ विवाह होना बहुत ज़रूरी था | इसी वजह से सभियो देवता चाहते थे की कुछ भी करके भगवान् शिव की समाधी भंग की जाए | ऐसा करने के लिये सारे देवताओं ने मिलकर कामदेव को चुना |
कैसे खुला प्रभु का त्रिनेत्र :
कामदेव कैलाश पर्वत पे आकर तरह-तरह के स्वांग रचकर भगवान शिव के ध्यान को भंग करने की कोशिश करने लगे | पर महादेव को यूँ ही सबसे बड़ा योगी नहीं कहा गया है | वो अपनी समाधी में अब भी लीन थे | जब सारे उपाय निष्फल साबित हुए तब अंत में कामदेव ने अपना प्रेमास्त्र साधा और उसपर बाण चढ़ा भगवान शिव पर छोड़ दिया | बाण लगते ही भगवान् शिव का ध्यान भंग हो गया |
ऐसा दुस्साहस आज तक किसी ने नहीं किया था | इसकी वजह से भगवान् शंकर अत्यंत ही क्रोधित हो उठे और क्रोध के वशीभूत होकर उनका त्रिनेत्र खुल गया | जिसमे से निकलती ज्वाला ने क्षण भर में कामदेव को जलाकर राख कर दिया |
कैसे हुआ कामदेव का पुनर्जन्म ?
कामदेव को भस्म करने के बाद जाकर भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ | एक तरफ जहाँ सारे देवता भगवान शिव के ध्यान से उठ जाने की वजह से खुश थे वहीँ कामदेव की आहुति से दुखी भी थे |
कामदेव की पत्नी रती के अश्रु तो रुक ही नहीं रहे थे | तब भगवान् शिव ने रती को ये सांत्वना दी की कामदेव का जन्म द्वापर युग में भगवान् कृष्ण के पुत्र के रूप में होगा जो आगे जाकर सफल सिद्ध हुआ |