कितने स्वार्थी किस्म के भक्त हम। बस अपनी ही लगी रहती है। भगवान के सामने जब भी मुँह खोलते हैं या हाथ फैलाते हैं तब बस अपने लिये ही माँगते हैं। अपने स्वार्थ के सागर को समेट कर कॉलोनी का नाला बनाने के बाद भी प्रार्थना का दायरा खुद से बढ़कर परिवार तक ही पहुँच पाता है। अपने बच्चे, हमारा परिवार, मेरा घर इन सब से आगे बढ़कर हमने कभी आसमान के कैनवास पर नीला रंग बिखेरने वाले की फ़ैमिली के बारे में कभी नहीं सोचा।
जिसने बादलों में पानी वाले घड़े ढरकाये, धरती पर धूप परोसी, रातों को स्याह किया उसका भी तो भाई एक परिवार होगा न। आपकी ड्यूटी तो 9 घंटे की ही होती हैं पर भगवान् तो हर एक क्षण प्रकृति के बटखरे को बराबर रखते हैं। आपके घर वाले वीकेंड पर कहीं बाहर ना ले जाने पर कितना भड़क जाते हैं तो सोचिये वहां वैकुण्ठ का नज़ारा क्या होता होगा। चलिए इसी बात पर आज आपको भगवान भगवान विष्णु की फ़ैमिली का पूरा लेखा जोखा आपको बताते हैं।
जिसने बादलों में पानी वाले घड़े ढरकाये, धरती पर धूप परोसी, रातों को स्याह किया उसका भी तो भाई एक परिवार होगा न। आपकी ड्यूटी तो 9 घंटे की ही होती हैं पर भगवान् तो हर एक क्षण प्रकृति के बटखरे को बराबर रखते हैं। आपके घर वाले वीकेंड पर कहीं बाहर ना ले जाने पर कितना भड़क जाते हैं तो सोचिये वहां वैकुण्ठ का नज़ारा क्या होता होगा। चलिए इसी बात पर आज आपको भगवान भगवान विष्णु की फ़ैमिली का पूरा लेखा जोखा आपको बताते हैं।
ये रहा भगवान विष्णु का आधार कार्ड :
आपको पालनहार के मौलिक वजूद के बारे में तो सब पता होगा पर उनके कितने पुत्र है ?, उनका परिवार कहाँ रहता है ?, उनकी सवारी क्या है ये सब आपके लिए अब भी कौतुहल का विषय होगा। तो आइये एक-एक करके ये सारी गुत्थी सुलझा देते हैं।
नाम : विष्णु
वर्णन : हाथ में शंख, गदा, चक्र, कमल
पत्नी : लक्ष्मी
पुत्र : आनंद, कर्दम, श्रीद, चिक्लीत
शस्त्र : सुदर्शन चक्र
वाहन : गरूड़
विष्णु पार्षद : जय, विजय
विष्णु संदेशवाहक : नारद
निवास : क्षीरसागर (हिन्द महासागर)
ग्रंथ : विष्णु पुराण, भागवत पुराण, वराह पुराण, मत्स्य पुराण, कुर्म पुराण।
मंत्र : ॐ विष्णु नम:, ॐ नमो नारायण, हरि ॐ
प्रमुख अवतार : सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार, हंसावतार, हयग्रीव, नील वराह, आदि वराह, श्वेत वराह, कुर्मा, मत्स्य, नर-नारायण, वामन, धन्वंतरि, मोहिनी, गजेन्द्रोधार, कपिल मुनि, दत्तात्रेय, पृथु, परशुराम, व्यास, राम, कृष्ण और कल्की ।
कहाँ से मिली इतनी जानकारी :
आनन्द: कर्दम: श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुत:।
ऋषय श्रिय: पुत्राश्च मयि श्रीर्देवी देवता।।- (ऋग्वेद 4/5/6)
वेदों के बारे में बात करना जितना सहज है उतना ही पुरुषार्थ उनको पढ़ने में लगता है। और जब हमने इतना पुरुषार्थ किया तब हमें ये ऊपर दिए गए श्लोक मिले। इस श्लोक से ही ये सारी जानकारियाँ उपलब्ध हो पायी हैं। तो आगे से जब अपने लिए प्रार्थना करने जाये तो उसके साथ थोड़ा सा कुछ ज़माने के लिये भी मांग लिया करें। सब मंगल-मंगल हो।