राम सीता विवाह :
सीता स्वयंवर की पौराणिक कथा :
माता सीता ने एक बार मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था जिसे भगवान परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था तब ही राजा जनक ने निर्णय लिया था कि वे अपनी पुत्री के योग्य उसी मनुष्य को समझेंगे जो भगवान विष्णु के इस धनुष को उठाये और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाये | स्वयंवर का दिन तय किया गया चारों और संदेश भेज दिया गया कई बड़े बड़े महारथी इस स्वयंवर का हिस्सा बने जिसमें महर्षि वशिष्ठ के साथ भगवान राम और लक्षमण भी दर्शक के रूप में शामिल थे | कई राजाओं ने प्रयास किया लेकिन कोई भी उस धनुष को हिला ना सका प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर की बात हैं |इस प्रदर्शन से दुखी होकर राजा जनक ने करुण शब्दों में कहा कि क्या कोई राजा मेरी पुत्री के योग्य नहीं हैं | उनकी इस मनोदशा को देख महर्षि विश्वामित्र ने भगवान राम से प्रतियोगिता में हिस्सा लेने कहा | गुरु की आज्ञा का पालन करते हुये भगवान राम ने शिव धनुष को उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे लेकिन वह धनुष टूट गया और इस प्रकार स्वयंवर को जीत उन्होंने सीता से विवाह किया | सीता ने भी प्रसन्न मन से भगवान राम के गले में वरमाला डाली |
विवाह उपरान्त हर तरफ छा गयीं खुशियाँ :
इस विवाह से धरती,पाताल एवम स्वर्ग लोक में खुशियों की लहर दौड़ पड़ी | कहते हैं आसमान से फूलों की बौछार की गई |पूरा ब्रह्माण्ड गूंज उठा चारों तरफ शंख नाद होने लगा | इसी प्रकार आज भी विवाह पंचमी को सीता माता एवम भगवान राम के विवाह के रूप में हर्षो उल्लास से मनाया जाता हैं |अघन की इस पंचमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम एवं सीता का विवाह हुआ था इस उपलक्ष में सभी मंदिरों में उत्सव होते हैं | मनुष्य जाति को मानव जीवन का पाठ सिखाने के लिये ही भगवान राम ने धरती पर जन्म लिया था | पत्नी कर्तव्य का बखान सीता माता के जीवन से मिलता हैं | विवाह पंचमी के दिन कई तरह से इस कथा को सुना-पढ़ा जाता हैं | विवाह पंचमी उत्सव खासतौर पर नेपाल एवम भारत के अयोध्या में मनाया जाता हैं |