भगवान शिव माता पार्वती पुत्र गणेश और नंदी कैलाश पर्वत पर रहते थे। एक बार माता पार्वती के मन में एक सवाल आया की उनको भगवान् शिव की पत्नी बनने लिए हर बार नया जन्म लेना पड़ता और बहुत कड़ी तपस्या करनी पड़ती हैं। माता पार्वती ने भगवान् शिव से पूछा की भगवान् आपका जन्म क्यों नहीं होता हैं। तब भगवान् शिव ने माता पार्वती को अमरत्व के बारे में नहीं बताया लेकिन कहते हैं ना पत्नी हठ से बड़ा कुछ नहीं।
पत्नी हठ के आगे भगवान् हो या इंसान सभी को झुकना पड़ता हैं। माता पार्वती के हठ के कारण भगवान शिव ने उनको अमर कथा सुनाई थी।
अमरनाथ जाते समय सभी को छोड़ माता पार्वती संग आगे बढ़े शिवजी -
अमरनाथ सुनने में भी कितना आन्ददायक हैं। अमतरनाथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना हैं पहला हैं 'अमर' जिसका मतलब होता हैं 'अनश्वर' (जिसका कभी अन्त ना हो) और दूसरा शब्द हैं 'नाथ' जिसका मतलब हैं भगवान। अमरत्व की कथा सृष्टि में सबसे बड़ी कथा हैं जिसको किसी को भी बताया नहीं जा सकता हैं। इसी कारण भगवान् शिव ने पुत्र गणेश अपने वाहन नंदी को सभी को पीछे छोड़ा। उन्होंने अनन्त सापों को अंनतसाप में छोड़ा। माथे के चन्दन को चंदनबाड़ी में और शेषनाग नाग को शेषनाग स्थान छोड़ा। और माता पार्वती संग आगे बढ़े।
अमरनाथ गुफा की ख़ोज -
अमरनाथ की गुफा को हिंदुओं का पावन स्थल माना जाता हैं यह वो स्थान हैं जंहा पर अमर कथा सुनाई गयी थी। अमरनाथ की गुफा भारत में कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में 134 सहस्त्रामीटर दूर समुद्रतल से 13,600 फ़ीट की ऊचाँई पर स्थित हैं।
अमरनाथ गुफा की खोज १६वीं सदी में एक मुस्लमान गरड़िए ने की थी। यह मुस्लमान अपनी बकरियों को चराता हुआ अमरनाथ गुफा पर जा पहुँचा। आज भी गुफा के चढ़ावे का चौथाई हिस्सा उस गरड़िए के वंशज को जाता हैं।
अमरनाथ में शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनती हैं और यह सावन के महीने में बनती हैं। शिवलिंग का बढ़ना और घटना चंद्रमा के साथ बढ़ती घटती हैं। श्रावण मास पूर्णिमा को शिवलिंग का पूर्ण आकर होता हैं और अमावस्या तक घट जाता हैं। गुफा में यह शिवलिंग ठोस बर्फ की होती हैं जबकि पूरी गुफा में बारीक़ बर्फ होती हैं।
अमरनाथ जाने के हैं दो रास्ते -
अमरनाथ गुफा के दर्शन करने के लिए दो रास्ते हैं। एक रास्ता पहलगाम होकर और दूसरा रास्ता सोनमर्ग बलटाल से होकर जाता हैं।
बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी १४ किलोमीटर की हैं। यह रास्ता सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ही ज्यादा असुरक्षित हैं। जिन लोगों को डर से खेलना अच्छा लगता हैं वो लोग इस रास्ते को चुनते हैं। सरकार इस रास्ते को बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं मानती हैं और पहलगाम वाले रास्ते से यात्रा करने के लिए प्रेरित करती हैं।
पहलगाम जम्मू से ३१४ किलोमीटर की दूरी पर हैं। इस पर्यटन स्थल की सुंदरता ऐसे बताई भी नहीं जा सकती। पहलगाम जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पर्यटन केंद्र से सरकारी बस भी उपलब्ध हैं। यहाँ से ही पैदल यात्रा प्रारम्भ होती हैं। सरकार की दृष्टि से यह मार्ग यात्रियों के लिए सरल और सुलभ हैं।
माता पर्वती के साथ कबूतर के जोड़े ने भी सुनी अमरकथा -
शिवजी माता पार्वती संग अमरनाथ की गुफा में पहुँचे और वँहा पर ही शिवजी ने माता पार्वती को अमर कथा सुनाई। लेकिन उस गुफा में शिवजी और माता पार्वती के अलावा कबतरों का जोड़ा भी था। जब भगवान् शिव माता पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे तब बीच में ही माता पार्वती को नींद आ गयी थी लेकिन कबूतरों का जोड़ा बहुत श्रद्धा भाव से कथा सुन रहा था।
जब कथा समाप्त हुई तो शिवजी को पता चला माता पार्वती ने पूरी कथा नहीं सुनी थी। अमरत्व की पूरी कथा तो उस कबूतर के जोड़े ने सुनी थी। वो जोड़ा अभी भी उस गुफा में रहता हैं और जिसको भी दीखता हैं उसको माता पार्वती और शिवजी के दर्शन होते हैं और उसको मुक्ति प्राप्त होती हैं।