Temples

अगर जोता वाली माता के दर पे कभी माथा नहीं टेका तो समझो ममता और शक्ति का एक रूप देखना रह गया | Full story of Jyota wali Mata



*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।  


भक्त के इंजतार में प्रज्वलित है माँ ज्वाला :


हमारे देश में ऐसा कोई राज्य नही होगा, जहां ईश्वर के चमात्कारिक मंदिर न हो। फिर बात चाहे राजस्थान के शीतला माता मंदिर की हो या फिर हिमाचल प्रदेश में स्थित ज्वालामुखी देवी मंदिर की। अगर आप गर्मियों में शिमला की सैर करने का प्रोग्राम बना रहे हैं तो मां ज्वालादेवी के मंदिर में अपना माथा टेकना न भूले। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर माता सती की जीभ गिरी थी। वैसे तो हर मंदिर में मां के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है, लेकिन इस मंदिर में किसी मूर्ति की नहीं, बल्कि धरती से निकलने वाली नौ ज्योत मतलब ज्वाला की पूजा की जाती है। ये सभी ज्योत बिना तेल और घी के प्रज्वलित हो रही है।  इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इसलिए इस मंदिर को ज्वालामुखी मंदिर, जोता वाली का मंदिर और नगरकोट से भी जाना जाता है। 

अकबर का झुकाया सिर :


इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी। बताया जाता है कि मां के चमत्कार के आगे अकबर को अपना सिर झुकाना पड़ा। बताया जाता है कि एक बार माता का भक्त ध्यानू अपने साथ हजारों भक्तों के साथ मां के दर्शन के लिए जा रहा था। इतने सारे लोगों को एक साथ देखकर अकबर के सिपाहियों ने उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर को ध्यानू ने  मां की शक्ति और महिमा की बहुत सारी कथाएं सुनाईं, लेकिन अकबर को उसकी बातों पर बिलकुल भी भरोसा नहीं हुआ और उसने माता की परीक्षा लेने के लिए ध्यानू के घोड़े की गर्दन काट दी और कहा कि अब जाकर इस गर्दन को जोड़ कर दिखाओ। ध्यानू मां की शरण में गया और उसने खूब पूजा-अर्चना की। मां ने उसकी भक्ति की लाज रखी और उसके घोड़े की गर्दन को फिर से जोड़ दिया। इसके बाद भी अकबर का धमंड नहीं टूटा और उसने मंदिर से निकल रही ज्वालाओं को बुझाने का आदेश अपने सैनिकों को दिया। अकबर के सैनिकों ने मंदिर के बगल में नदी खोद दी और ज्वाला को बुझाने के लिए हर संभव कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। अंत में अकबर को भी सद्धबुद्धि आई और उसने माता से क्षमा मांग कर भेंट स्वरूप सोने का छत्र चढ़ाया, लेकिन मां ने उसे स्वीकार नहीं किया। वे छत्र गिरकर अन्य पदार्थ में बदल गया।  

इसलिए नहीं बुझती है ये ज्वाला :


शास्त्रों में एक कथा का जिक्र किया गया है। बताया जाता है कि प्राचीन काल में गोरखनाथ मां के परम भक्त थे। एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तब उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं। मां ने आग जलाकर पानी गर्म किया और गोरखनाथ का इंतजार करने लगी, इसलिए आज भी मां ज्वाला जलाकर अपने भक्त का इन्तजार कर रही है। ऐसा कहा जाता है कि जब कलियुग होगा और सतयुक आएगा तब गोरखनाथ लौटकर मां के पास आएंगे। तब तक यह अग्नी इसी तरह जलती रहेगी।

कुछ खास बातें :


मंदिर के ठीक नजदीक गोरखनाथ मंदिर भी है, जहां गोरख डिब्बी है, जिसका पानी उबलता हुआ प्रतीत होता है, लेकिन छूने पर वह बिल्कुल ठंडा होता है। कहते हैं कि अंग्रेजों ने निकल रही ज्वाला के भेद को जानने की पूरी कोशिश की, लेकिन आखिरकार उन्हें भी सफलता हाथ नहीं लगी। कई वैज्ञानिक यहां आकर अपनी रिसर्च कर चुके हैं, लेकिन उन्हें भी सफलता हासिल नहीं हुई। 



About Anonymous

MangalMurti.in. Powered by Blogger.