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गज और ग्राह की वो कहानी जिसके हीरो भगवान विष्णु थे | Great mythological Story of Gaj and Grah



भगवान विष्णु को पालनहार का दर्जा दिया गया है। पर ये इसलिए नहीं क्योंकि उनके जिम्मे धरती भर का बोझ है और वो उसे ढ़ोते है बल्कि इसलिए क्योंकि वो अपना दायित्व हर मौके पर निभाते हैं। जैसे एक माँ के लिये उसके सारे बच्चे एक से हैं वैसे ही प्रभु विष्णु के लिये भी हर प्राणी, जीव, जंतु, अश्व, गंधर्व, किन्नर एक से है। बचपन में आपने गज और ग्राह की कहानी अपनी नानी, दादी या नाना, बाबा से सुनी ही होगी। अगर तब नहीं सुनी तो आज हम आपको गज और ग्राह की वो कथा सुनाते है जिसका पौराणिक महत्व बहुत है।


गज और ग्राह की कथा :

पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के दो भक्त जय और विजय शापित होकर हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे। गंडक नदी में एक दिन कोनहारा के तट पर जब गज पानी पीने आया था तो ग्राह ने उसे पकड़ लिया था। फिर गज ग्राह से छुटकारा पाने के लिए कई सालों तक लड़ता रहा। तब गज ने बड़े ही मार्मिक भाव से हरि यानी विष्णु को याद किया।


गज की प्रार्थना सुनकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु भगवान ने उपस्थित होकर सुदर्शन चक्र चलाकर उसे ग्राह से मुक्त किया और गज की जान बचाई। इस मौके पर सारे देवताओं ने यहां उपस्थित होकर जय-जयकार की थी लेकिन आज तक यह साफ नहीं हो पाया कि गज और ग्राह में कौन विजयी हुआ और कौन हारा। इसी के पास कोनहराघाट में पौराणिक कथा के अनुसार गज और ग्राह का वर्षों चलने वाला युद्ध हुआ था। बाद में भगवान विष्णु की सहायता से गज की विजय हुई थी।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार :


एक अन्य किवदंती के अनुसार जय और विजय दो भाई थे। जय शिव के तथा विजय विष्णु के भक्त थे। इन दोनों में झगड़ा हो गया तथा दोनों गज और ग्राह बन गए। बाद में दोनों में मित्रता हो गई वहाँ शिव और विष्णु दोनों के मंदिर साथ- साथ बने जिससे इसका नाम हरिहर क्षेत्र पड़ा। कुछ लोगों के कथनानुसार प्राचीन काल में यहाँ ऋषियों और साधुओं का एक विशाल सम्मेलन हुआ तथा शैव और वैष्णव के बीच गंभीर वाद-विवाद खड़ा हो गया लेकिन बाद में दोनों में सुलह हो गई और शिव तथा विष्णु दोनों की मूर्तियों की एक ही मंदिर में स्थापना की गई।



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