Hinduism

जिस गंगा में बिना सोचे पान की पीच थूक देते हो उसे धरती पर लाने में भगीरथ के पसीने छूट गए थे | Story of Ganga incarnation on Earth



वो गंगोत्री से निकलती हैं और बंगाल की कड़ी में समा जाती हैं। इस रास्ते में जो भी इनको मिलता है वो उन सबको तारते जाती हैं इस भवसागर से। कहते हैं अगर इनका एक बार भी स्पर्श कर लिया तो इस यमलोक में किये हर पाप नष्ट हो जाते हैं। तो ऐसा भव्य अस्तित्व है माँ गंगा का जो हर किसी का उद्धार करने के लिये ही धरती पर अवतरित हुई थी। पर आज के समय में हम सभी लोगों ने इनको दूषित और अशुद्ध कर दिया है। पर हममे से बहुत ही कम लोगों को गंगा के धरती पर अवतरण की कथा मालूम होगी। तो आइये आज आपको माँ गंगा के धरती पर अवतरण की कथा सुनाते हैं। 

गंगा अवतरण की पौराणिक कथा :

गंगा के अवतरण की एक पौराणिक कथा बड़ी प्रचलित है । भगीरथ ने स्वर्ग में बहने वाली गंगा के प्रवाह को पृथ्वी पर लाया । भगीरथ की कथा सभी जानते हैं । एक महाराजा सगर थे । पुराण बताते हैं कि कपिल मुनि के शाप के कारण महाराज सगर के साठ हजार पुत्र जलकर भस्म हो गए । ऋषि से पूछा कि उनका उद्धार कैसे होगा ? तो उन्होंने बताया कि स्वर्ग में बहने वाली नदी गंगा है, उसका पानी यहाँ आएगा, उसका स्पर्श अगर इनको होगा तो उनका उद्धार हो जाएगा । सगर महाराज तो चले गए ।


फिर उनके पुत्र अंशुमान ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या की । लेकिन सफलता नहीं मिली । अंशुमान के पुत्र यानि सगर महाराज के पौत्र भगीरथ थे । उन्होंने तपस्या की और स्वर्ग से गंगा को वे पृथ्वी पर ले आए । कहते हैं कि बीच में शंकर की जटा में गंगा उलझ गई थी । तो वहाँ से इसे निकाला । जन्हु नाम के एक ऋषि की टांग में फँस गई । तो वहाँ सेंध लगाकर उसको बाहर निकाला तबसे गंगा पृथ्वी पर बह रही है ।


पुराण की कथाएँ साधारणतः रुपक कथाएँ होती हैं । इस रूपक कथा का मतलब क्या है ? गंगा स्वर्ग में बहती थी, यानि कहाँ बहती थी ? वह तिब्बत में बहती थी । जैसे आज ‘ब्रह्मपुत्र’ बहता है । आधा ब्रह्मपुत्र यानि करीब ९०० मील वह तिब्बत में बहता है, जिसके पानी का कोई उपयोग नहीं है । बर्फ ही बर्फ है । बाद में असम होकर भारत में आता है ।



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