*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
ईश्वर की भक्ति करना हर किसी के बस में नहीं होता है। कुछ भक्त ऐसे भी होते हैं, जो दिन-रात ईश्वर की भक्ति में ही लीन रहते हैं। उन्हें न तो दिन की सुध होती है न ही रात की। लेकिन अगर आप मध्यप्रदेश के सतना स्थित मैहर माता के मंदिर में जा रहे हैं तो संभल जाइए। यहां रात को भक्तों को भक्ति करना मना है। यहां के लोगों के अनुसार जो भक्त रात में माता की भक्ति करता है, वे अपने प्राण खो देता है। ये मंदिर त्रिकुटा पहाड़ी पर बना हुआ है। ये मां शारदा का मंदिर है, जिसे देशभर में मैहर माता के नाम से जाना जाता है। मैहर का मतलब है माता का हार।
अगर कोई भक्त चोरी-छुपे उन्हें देखने की कोशिश करता है तो उसे अपने प्राण खोने पड़ जाते हैं। यहाँ माता के साथ ही काल भैरवी, भगवान हनुमान, देवी काली, देवी दुर्गा, गौरी-शंकर, शेष नाग और ब्रह्म देव की भी पूजा की जाती है। ये मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए भक्तों को मां के दर्शन करने के लिए 1063 सीढिय़ों का सफर तय करना पड़ता है। वैसे जो श्रद्धालु सीढिय़ा से जाने में असमर्थ है, उनके लिए यहां रोपवे की भी व्यवस्था है। यहाँ पहाड़ियों के बीच एक छोटा सा मार्केट भी है। हर साल काफी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।
ईश्वर की भक्ति करना हर किसी के बस में नहीं होता है। कुछ भक्त ऐसे भी होते हैं, जो दिन-रात ईश्वर की भक्ति में ही लीन रहते हैं। उन्हें न तो दिन की सुध होती है न ही रात की। लेकिन अगर आप मध्यप्रदेश के सतना स्थित मैहर माता के मंदिर में जा रहे हैं तो संभल जाइए। यहां रात को भक्तों को भक्ति करना मना है। यहां के लोगों के अनुसार जो भक्त रात में माता की भक्ति करता है, वे अपने प्राण खो देता है। ये मंदिर त्रिकुटा पहाड़ी पर बना हुआ है। ये मां शारदा का मंदिर है, जिसे देशभर में मैहर माता के नाम से जाना जाता है। मैहर का मतलब है माता का हार।
यहाँ गिरा था माँ का हार :
इस मंदिर का निर्माण कैसे हुआ, इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। पंडितों के अनुसार जब भगवार शंकर का अपमान किया गया था तो माता सती ने अग्नि कुंड में कूदकर अपनी आहुति दे दी थी। इस बात से भगवान शंकर काफी गुस्सा हो गए और उन्होंने माता के शरीर को कुंड में से निकाल लिया था। गुस्से में भगवान शिव तांडव करने लगे। इस वजह से मां का शरीर ५२ भागों में विभाजित हो गया। जहां जहां भी उनके अंग गिरे वहां मंदिरों का निर्माण किया। इस जगह मां का हार गिर था। इसलिए इसे मैहर माता का मंदिर का निर्माण किया गया।रात में दर्शन करना क्यों मना है ?
इस मंदिर में अब तक जो भी व्यक्ति रात में रूका है, उसने अपने प्राण त्याग दिए। इस पीछे भी एक कहानी है। स्थानीय निवासियों के अनुसार आल्हा और उदल दो भाई थे, वे माता के भक्त थे। उन्होंने ही पहाड़ी पर मां के मंदिर की तलाश की थी। वे मां के भक्त थे इसलिए उन्होंने १२ साल मां की कठोर तपस्या की। मां उनकी तपस्या से खुश हो गई और उन्होंने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। कहा जाता है कि रात में दोनों भाई मां के दर्शन के लिए आते हैं और मां की भक्ति में लीन हो जात हैं। इस वजह से यहां रात में भक्तों को जाने की आज्ञा नहीं है।अगर कोई भक्त चोरी-छुपे उन्हें देखने की कोशिश करता है तो उसे अपने प्राण खोने पड़ जाते हैं। यहाँ माता के साथ ही काल भैरवी, भगवान हनुमान, देवी काली, देवी दुर्गा, गौरी-शंकर, शेष नाग और ब्रह्म देव की भी पूजा की जाती है। ये मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए भक्तों को मां के दर्शन करने के लिए 1063 सीढिय़ों का सफर तय करना पड़ता है। वैसे जो श्रद्धालु सीढिय़ा से जाने में असमर्थ है, उनके लिए यहां रोपवे की भी व्यवस्था है। यहाँ पहाड़ियों के बीच एक छोटा सा मार्केट भी है। हर साल काफी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।