*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये बारह ज्योतिर्लिंग में से सबसे अंतिम ज्योतिर्लिंग है। पुराणों के अनुसार घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा का मतलब होता है बारह ज्योतिर्लिंग यात्रा का समापन। घृष्णेश्वर दर्शन के बाद द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा को पूरा माना जाता है। इसके बाद भक्त काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए जाते है।
इस मंदिर का जीर्णोद्धार सर्वप्रथम 16 वीं शताब्दी में वेरुल के ही मालोजी राजे भोंसले (छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा) के द्वारा तथा पुन: 18 वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर के द्वारा करवाया गया था।
ये हैं कथा :
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में पुराणों में यह कथा वर्णित है। देवगिरिपर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक अत्यंत तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था। उन दोनों में बहुत प्रेम था, लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी। सुदेहा के कहने पर सुधर्मा ने दूसरा विवाह सुदेहा की छोटी से कर लिया। घुश्मा अत्यंत विनीत और सदाचारिणी स्त्री थी। वे शिव भक्त थी। शिवजी की कृपा से घुश्मा को पुत्र प्राप्ति हुई। दोनों बहनें आराम से रह रही थी, लेकिन कुछ ही समय बाद सुदेहा के मन में एक कुविचार ने जन्म ले लिया। वह सोचने लगी, मेरा तो इस घर में कुछ है नहीं। सब कुछ घुश्मा का है। इसलिए एक दिन उसने घुश्मा के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला। उसके शव को ले जाकर उसने उसी तालाब में फेंक दिया, जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को फेंका करती थी।
सुबह होते ही सबको इस बात का पता लगा। पूरे घर में कुहराम मच गया। सुधर्मा और उसकी पुत्रवधू दोनों सिर पीटकर फूट-फूटकर रोने लगे। लेकिन घुश्मा नित्य की भांति भगवान शिव की आराधना में तल्लीन रही। जैसे कुछ हुआ ही न हो। पूजा समाप्त करने के बाद वह पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोडऩे के लिए चल पड़ी। जब वह तालाब से लौटने लगी उसी समय उसका प्यारा लाल तालाब के भीतर से निकलकर आता हुआ दिखलाई पड़ा। वह सदा की भाँति आकर घुश्मा के चरणों पर गिर पड़ा।
इसी समय भगवान शिव भी वहां प्रकट होकर घुश्मा से वर मांगने को कहने लगे। वह सुदेहा की घनौनी करतूत से अत्यंत क्राधित थे। घुश्मा ने हाथ जोड़कर भोले बाबा से से कहा- आप मेरी बहन को क्षमा करो। इसके साथ ही घुश्मा ने लोक-कल्याण के लिए शिवजी को इस स्थान पर सर्वदा के लिए निवास करने का आग्रह किया। शिव ने उसकी ये दोनों बातें स्वीकार कर लीं। ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर वह वहीं निवास करने लगे। शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण वे यहां घुश्मेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए। घुश्मेश्वर-ज्योतिर्लिंग की महिमा पुराणों में बहुत विस्तार से वर्णित की गई है।
कुछ खास बातें :
- यह मंदिर प्राचीन हिन्दू शिल्पकला का एक बेजोड़ नमूना है। इस मंदिर में तिन द्वार हैं एक महाद्वार तथा दो पक्षद्वार। श्री जयराम भाटिया नाम के गुजरती भक्त ने मंदिर को सोने का पता लगाया हुआ ताम्र कलश भेंट किया है जो मंदिर की शोभा को चार चांद लगाता प्रतीत होता है.
- मंदिर में प्रवेश से पहले ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए पुरुष भक्तों को अपने शरीर से शर्ट (कमीज) एवं बनियान तथा बेल्ट उतरने पड़ते हैं।