रामेश्वर ज्योतिर्लिंग का हिन्दू पुराणों में बड़ा ही विशेष महत्व है। ये मंदिर हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में भी अपना विशेष स्थान रखता है। रामेश्वर तमिलनाडू राज्य के रामनाथपुर जिले में स्थित है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु अपना शीशु झुकाने के लिए आते हैं। यहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व एक पत्थरों के सेतु का निर्माण किया था, जिसपर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची थी। बाद में राम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया गया था।
ये हैं कथा :
कथा के अनुसार जब भगवान श्री राम माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाकर अयोध्या लौट रहे थे। तब सभी ऋषियों ने उन्हें यज्ञ करने को कहा, क्योंकि रावण ब्राह्मण था और ऋषि पुलस्य का नाती था। इस पाप से बचने के लिए उन्हें इस स्थान पर भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग स्थापित कर पूजन करना चाहिए। भगवान श्रीराम ने हनुमान से अनुरोध किया कि वे कैलाश पर्वत पर जाकर शिवलिंग लेकर आए। भगवान राम के आदेश पाकर हनुमान कैलाश पर्वत पर गए, लेकिन उन्हें वहां भगवान शिव के दर्शन नहीं हो पाए। इसके बाद हनुमान ने तप किया, जिसके बाद शिव जी ने दर्शन दिए, लेकिन इस काम में बहुत अधिक समय लग गया। उधर भगवान राम और देवी सीता शिवलिंग की स्थापना का शुभ मुहूर्त लिए प्रतिक्षा करते रहे थ। शुभ मुहूर्त निकल जाने के डर से देवी जानकी ने विधिपूर्वक बालू का ही लिंग बनाकर उसकी स्थापना कर दी।
शिवलिंग की स्थापना होने के कुछ पलों के बाद हनुमान जी शंकर जी से लिंग लेकर पहुंचे तो वे जिद करने लगे की उनके द्वारा लाए गए शिवलिंग को ही स्थापित किया जाए। इसपर भगवान राम ने कहा की तुम पहले से स्थापित बालू का शिवलिंग पहले हटा दो, इसके बाद इस शिवलिंग को स्थापित कर दिया जाएगा। हनुमान जी ने अपने पूरे सामथ्र्य से शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहें। काफी कोशिश करने की वजह से हनुमान जी ही लहूलुहान हो गए। हनुमान जी की ऐसी हालत देखकर माता सीता रोने लगी और हनुमान जी को भगवान राम ने समझाया की शिवलिंग को उसके स्थान से हटाने का जो पाप तुमने किया उसी के कारण उन्हें ह शारीरिक कष्ट झेलना पडा। अपनी गलती के लिए हनुमान जी ने भगवान राम से क्षमा मांगी और जिस शिवलिंग को हनुमान जी कैलाश पर्वत से लेकर आए थे, उसे भी समीप ही स्थापित कर दिया गया। इस लिंग का नाम भगवान राम ने हनुमदीश्वर रखा गया। इन दोनों शिवलिंगों की प्रशंसा भगवान श्री राम ने स्वयं अनेक शास्त्रों के माध्यम से की है।
शिवलिंग की स्थापना होने के कुछ पलों के बाद हनुमान जी शंकर जी से लिंग लेकर पहुंचे तो वे जिद करने लगे की उनके द्वारा लाए गए शिवलिंग को ही स्थापित किया जाए। इसपर भगवान राम ने कहा की तुम पहले से स्थापित बालू का शिवलिंग पहले हटा दो, इसके बाद इस शिवलिंग को स्थापित कर दिया जाएगा। हनुमान जी ने अपने पूरे सामथ्र्य से शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहें। काफी कोशिश करने की वजह से हनुमान जी ही लहूलुहान हो गए। हनुमान जी की ऐसी हालत देखकर माता सीता रोने लगी और हनुमान जी को भगवान राम ने समझाया की शिवलिंग को उसके स्थान से हटाने का जो पाप तुमने किया उसी के कारण उन्हें ह शारीरिक कष्ट झेलना पडा। अपनी गलती के लिए हनुमान जी ने भगवान राम से क्षमा मांगी और जिस शिवलिंग को हनुमान जी कैलाश पर्वत से लेकर आए थे, उसे भी समीप ही स्थापित कर दिया गया। इस लिंग का नाम भगवान राम ने हनुमदीश्वर रखा गया। इन दोनों शिवलिंगों की प्रशंसा भगवान श्री राम ने स्वयं अनेक शास्त्रों के माध्यम से की है।
- रामेश्वरम शिवलिंग के दर्शन से ही व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यह स्थान ज्योतिर्लिंग और चार धाम यात्रा दोनों के फल देता है.
- रामेश्वर तीर्थ में चौबीस कुओं का निर्माण किया गया है। इसके जल से स्नान करने का भी विशेष महत्व है।