झारखंड के देवघर जिला स्थित वैद्यनाथ धाम शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं। पुराणों के अनुसार सुदर्शन चक्र के प्रहार से यहीं पर मां शक्ति का हृदय कटकर गिरा था। श्रावण मास में बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक गंगाजल से किया जाता है। गंगाजल यहां से 105 किमी दूर सुल्तानगंज से लाया जाता है। इसके साथ ही मंदिर की एक ओर विशेषता है। यहां के मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल हीं, बल्कि पंचशूल है। बताया जाता है कि मुख्य मंदिर में स्वर्णकलश के ऊपर स्थापित पंचशूल सहित यहां के सभी 22 मंदिरों मे पर भी पंचशूल स्थापित है, जिसे साल में एक बार शिवरात्री के मौके पर एक मंदिर से नीचे लाया जाता है और विशेष पूजा अर्चना की जाती है। विशेष बात यह है कि इस पंचशूल को को कोई भी पुजारी और व्यक्ति नहीं उतार सकता है। पंचशूल को मंदिर से नीचे लाने और ऊपर स्थापित करने के लिए एक ही परिवार के लोगों को मान्यता मिली हुई है और उसी परिवार के सदस्य यह काम करते हैं। इस समय यहां लोग देश- विदेश से काफी संख्या में आते हैं।
ये है अनोखी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहा था। वे अपना एक-एक सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था। जब रावण अपना दसवां सिर चढ़ाने वाला था, तब भोले बाबा ने उसे दर्शन दिए। रावण ने शिवजी से कामना लिंग को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया। महादेव ने उसकी इस मनोकामना को पूरा तो किया पर साथ ही एक शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कही भी रखा तो मैं फिर वहीं रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा। रावण ने शर्त मान ली। इसबात से सभी देवाता परेशान हो गए और वे अपनी समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने लीला रची। भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा, इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास उसे लघुशंका लगी।
ऐसे में रावण एक ग्वाले को शिवलिंग देकर लघुशंका करने चला गया. कहते हैं उस बैजू नाम के ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु थे। इस वहज से भी यह तीर्थ स्थान बैजनाथ धाम और रावणेश्वर धाम दोनों नामों से विख्यात है। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक रावण कई घंटो तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में है। इधर बैजू ने शिवलिंग धरती पर रखकर को स्थापित कर दिया।
जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब उसे भी भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह गुस्से में शिवलिंग पर अपना अंगूठा गढ़ाकर चला गया। इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिव-स्तुति करके वापस स्वर्ग को चले गए। तभी से महादेव कामना लिंग के रूप में देवघर में विराजते हैं।
लगता है भक्तों का मेला
वैसे तो इस मंदिर के प्रति लोगों की आस्था काफी है। यहां हर दिन ही भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन सावन के महीने में करीब एक लाख श्रद्धालु हर दिन बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करने आते हैं। अधिकतर भक्त सुल्तानगंज की उत्तरवाहिणी गंगा से जल भर कर कांवड़ लेकर करीब 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर यहां पहुंचते हैं और उसी जल से भगवान का जलाभिषेक करते हैं।
कुछ रोचक बातें
ये मंदिर ५१ शक्तिपीठों में एक हैं।
भगवान राम और हनुमान ने भी कांवड यात्रा यहां की थी।
मंदिर के मध्य प्रांगण में भव्य 72 फीट ऊंचा शिव का मंदिर है। इसके अतिरिक्त प्रांगण में अन्य 22 मंदिर स्थापित हैं।