भगवान शिव के कई नामों से जाना जाता है। उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है और नीलकंठ भी। भगवान शिव को भोलेनाथ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वे अपने भक्तों की हर मनोकामना शीघ्र पूरी करते हैं। जबकि नीलकंठ कहने के पीछे एक रोचक कहानी है। जिसका जिक्र हमारे पुराणों में भी किया गया है। कथा के अनुसान एक बार देवतागण और दैत्यों के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में असुरों ने देवताओं को हरा दिया। असुरों ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अपना कब्जा कर लिया। इस बात से देवता काफी परेशान हो गए और वे विष्णु जी की शरण में गए। विष्णु जी ने कहा कि समुद्र मंथन करो। समुद्र मंथन से अमृत का प्याला निकलेगा। इसे पीने के बाद कोई भी असुर देवताओं पर विजय प्राप्त नहीं कर पाएगा। देवताओं को ये बात ठीक लगी और वे समुद्र मंथन के लिए राजी हो गए, लेकिन विष्णु जी ने कहा कि इस कार्य में दैत्यों की भी आवश्यकता होगी। इस बात के बाद देवतागण दैत्य राज बलि के पास गए और उन्होंने समुद्र मंथन की बात बलि से की। बलि समुद्र मंथन के लिए राजी हो गए।
इस कार्य के लिए मंदराचल पर्वत की मथनी बनाई गई और वासुकीनाग की रस्सी के रूप में उपयोग में लिया गया। इसके बाद सभी देवता और दैत्य समुद्र मंथन करने लगे। जैसे ही समुद्र मंथन हुआ उसमें से कालकूट नाम का विष निकला। सभी देवता घबरा गए। सब देवता और दैत्य भागे कि इसका क्या करेंगे, त्राहि-त्राहि मच गई, देवताओं ने भगवान विष्णु से कहा-ये आपने क्या कर दिया। तभी सभी विष्णु जी के पास गए, तब विष्णु जी ने कहा अमृत पाने के लिए विषपान करना पड़ता है। जब तक जीवन में संघर्ष नहीं होगा, सुख कैसा मिलेगा। अब सभी देवतागण ने सोचा कि विष का प्याला कौन पीएगा। वे अपनी इस समस्या को लेकर शिवजी के पास गए और उन्होंने शिवजी से कहा कि आप इस विष को पी लें। भगवान शंकर मानगए और उन्होंने विष के प्याले को लेकर पीने लगे। लेकिन उन्होंने सोचा अगर ये विष बाहर निकलेगा तो पृथ्वी पर लोगों को कई समस्या का सामना करना पड़ेगा और अगर पूरा पी लिया तो हृदय में निवास कर रहे विष्णु जी को काफी तकलीफ होगी। इसलिए उन्होंने सारे विष को अपने कंठों में समा लिया। इसके बाद से ही शिवजी नीलकंठ कहलाए। इसके साथ ही भगवान शिव को श्मशान का निवासी भी कहते हैं। भोले कहते है कि एक न एक दिन सभी को मृत्यु प्राप्त होती है। इसलिए संसार में रहते हुए भी किसी से मोह मत रखो और अपने कर्तव्य को पूरा करो।
भोले की कुछ खास बातें
जिस प्रकार भगवान शिव भोले है, उसी प्रकार उनका वाहन भी शांत और भोला है। उनका वाहन बैल है। कड़ी मेहनत करने के बाद भी बैल कभी थकता नहीं है। वह लगातार अपने कर्म करते रहता है। इसका अर्थ है हमें भी सदैव अपना कर्म करते रहना चाहिए। कर्म करते रहने के कारण जिस तरह नंदी शिव को प्रिय है, उसी प्रकार हम भी भगवान शंकर को खुश कर सकते हैं।