पूजा पाठ एवं व्रत करना तो हम भारतीयों की सांसो में बसा हुआ हैं। बिना पूजा भारतीय लोग नहीं रह सकते हैं तो माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने में कैसे पीछे रह सकते हैं। माँ लक्ष्मी करने के लिए किया जाता हैं शुक्रवार का व्रत और पुरे विधि विधान से की जाती हैं माँ लक्ष्मी की पूजा। और इस व्रत को 'वैभव लक्ष्मी' व्रत के नाम से जाना जाता हैं।
इस व्रत को महिला, पुरुष कोई भी कर सकता हैं। यह व्रत घर परिवार में माँ लक्ष्मी का वास और सभी सुख शांति को प्राप्त करने के लिए किया जाता हैं। घर में धन की वर्षा के लिए यह व्रत बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष माँ लक्ष्मी की पूजा सफ़ेद फूल, सफ़ेद चन्दन आदि से करते हैं तथा खीर को प्रसाद में बनाया जाता हैं।
वैभव लक्ष्मी की व्रत कथा -
किसी शहर में लोग रहते थे सभी लोग अपने कामों में व्यस्त रहते थे किसी को किसी से कोई मतलब नहीं था। धीरे धीरे शहर में बुरा प्रभाव बढ़ने लगा परन्तु उस शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे जैसे की शीला और उसका परिवार। शहर के सभी लोग उनके परिवार की प्रसंशा करते थे। शीला और उसका पति दोनों सरल स्वभाव के थे और सदैव ही भक्ति में लीन रहते थे।
लेकिन शीला का पति कुछ बुरे लोगो की संगति में बैठने लगा धीरे धीरे उस पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगा अब उसको भी सबकी तरह जल्दी ही धनवान बनना था। बुरी संगति के प्रभाव से उसकी आदतें भी बुरी होती गयी जैसे शराब, चरस, गंझा और जुआ आदि खेलने लगा। जल्दी ही उसका घर बर्बाद हो गया और वो लोग सड़क पर आ गए पति का व्यवहार शीला के लिए भी बदल गया।
शीला भगवन पर भरोसा रख सब कुछ सहन करने लगी। वो पूरा दिन भक्ति लीन रहने लगी। एक दिन शीला के घर पर एक माँजी ने दस्तक दी उनके मुख पर एक तेज़्ज़ उनकी आंखे अमृतभरी उनको देखकर शीला को अपर शांति मिली। तब शीला उनको आदर सत्कार के साथ घर लेकर आयी तथा साचुकाते हुए एक फटी सी चादर पर बैठा दिया। तब माँजी ने बोलै क्यों शीला मुझे पहचाना नहीं हर शुक्रवार माँ लक्ष्मी के मंदिर में तुम भी आती थी और मैं भी, तुम काफी दिनों से आयी नहीं तो में ही मिलने आ गयी।
तब शीला से रुका नहीं गया और उसकी आँखों से आंसू निकल गए तब माँजी ने बोलै सुख दुःख सबके जीवन में आते हैं ऐसे उदास नहीं होते हैं। तब शीला ने अपनी सारी कहानी माँजी को बताई। तब उन्होंने बोला की कर्म का फल तो सभी को भोगना पड़ता हैं। पतरनतु शीला को एक समाधान भी दिया जिसको सुनकर शीला बहुत खुश हुई। अब शीला को समझते देर न लगी की ये साक्क्षात माँ लक्ष्मी हैं।
व्रत पूरी श्रद्धा भाव से रखा व् माँ लक्ष्मी की पूजा की तथा दिन में एक समय ही भोजन किया। शीला ने माँजी के बताये अनुसार 21 शुक्रवार माँ वैभव लक्ष्मी का व्रत पूरी श्रद्धा भाव से किया और उनके बताये अनुसार 21वें व्रत पर उद्द्यापन किया। सात स्त्रियों को भोजन कराकर उनको वैभव लक्ष्मी की पुस्तक भेंट में दी।
व्रत का प्रभाव -
पहला व्रत रखने के बाद शीला के पति में बहुत ही सुधार आया उसने शीला को मारा पीटा नहीं जिससे श्रद्धा और भी अधिक बढ़ गयी। धीरे धीरे उसका पति एक अच्छा इंसान बनने लगा तथा शीला के घर में माँ लक्ष्मी का भी आगमन हुआ। माँ लक्ष्मी की वंदना करते हुए शीला ने हे माँ! आप सभी के कष्टों को दूर हरती हो। जिसको भी संतान न हो आप उसको संतान दो, जिसके घर में धन न आप उसके घर में वास करो जो आपकी भक्ति पूरी श्रद्धा से करें उसको सभी कष्टों से मुक्त करना।