प्रिय दोस्तों आप यह तो भली प्रकार जानते हैं कि हमारे देश में रक्षाबंधन के त्यौहार का विशेष महत्व है और इस त्यौहार से जुडी हुई बहुत सी कहानियाँ सुनी होंगी ! लेकिन आज हम आपको एक ऐसी कहानी के बारे में बता रहे हैं जो आपने पहले कभी नहीं सुनी होगी जी हां आज हम आपको रक्षाबंधन से ही सम्बंधित माता लक्ष्मी और विष्णु भगवान् की कहानी बताने जा रहे हैं कि कैसे माता लक्ष्मी ने भगवान् विष्णु को बचाने के लिए किस राक्षस के राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया था?
राजा बलि द्वारा 110 यज्ञों का अनुष्ठान पूर्ण करना :-
यह कहानी उस समय को दर्शाती है जब महाशक्तिशाली असुरों के राजा बालि ने जब 110 यज्ञ पूर्ण कर लिए तब देवता काफी भयभीत होने लगे । उन्हें यह भय सताने लगा कि यज्ञों की शक्ति से राजा बलि स्वर्ग लोक पर भी कब्ज़ा कर लेंगे, इसलिए सभी देवगण भगवान विष्णु के पास स्वर्ग लोक की रक्षा हेतु पहुंचे।
भगवान् विष्णु का राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगना:-
जिसके बाद भगवान् विष्णु ने ब्राह्मण का रूप धरा और राजा बलि के सामने प्रकट होकर उनसे भिक्षा मांगी। भिक्षा में राजा ने उन्हें तीन पग भूमि देने का वादा किया। लेकिन तभी बलि के गु्रु शुक्रदेव ने ब्राह्मण रुप धारण किए हुए विष्णु को पहचान लिया और बलि को इस बारे में सावधान कर दिया किंतु राजा अपने वचन से न फिरे और तीन पग भूमि दान कर दी। इस दौरान विष्णुजी ने वामन रूप में एक पग में स्वर्ग में और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। अब बारी थी तीसरे पग की, लेकिन उसे वे कहां रखें? वामन का तीसरा पग आगे बढ़ता हुआ देख राजा परेशान हो गए, वे समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या करें और तभी उन्होंने आगे बढ़कर अपना सिर वामन देव के चरणों में रखा और कहा कि तीसरा पग आप यहां रख दें।
भगवान् विष्णु का राजा बलि के दरबार में द्वारपाल बन जाना:-
इस तरह से राजा से स्वर्ग एवं पृथ्वी में रहने का अधिकार छीन लिया गया और वे पाताल लोक में रहने के लिए विवश हो गए। कहते हैं कि जब बलि पाताल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा। इस वजह से मां लक्ष्मी, जो कि विष्णुजी की अर्धांगिनी थी वे परेशान हो गईं।
माता लक्ष्मी का राजा बलि को राखी बांधना:-
भगवान के रसातल निवास से परेशान लक्ष्मी जी ने सोचा कि यदि स्वामी रसातल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे तो बैकुंठ लोक का क्या होगा? इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे राखी बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुपउसके बदले में अपने पति भगवान विष्णु को साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी, उस दिन से ही रक्षा-बंधन मनाया जाने लगा। आज भी कई जगहे इसी कथा को आधार मानकर रक्षाबंधन मनाया जाता है।