Hinduism

मैं आज का रावण हूँ



 मैं आज का रावण हूँ 


 मैं आज का  रावण हूँ 
देख दूसरो की बढ़ती को मैं जल जाता हूँ 
मैं आज का रावण हूँ 
मोहवश उत्पन्न आवेश को 
अपना  स्वभाव समझ मैं जोर जोर चिल्लाता हूँ 
अपने विवेक को हर
बस कुछ भी बोले जाता हूँ 
अपने कुल, जाति,बल, रूप, ज्ञान, विद्या , कौशल पर 
अभिमान कर सबसे ईर्ष्या का भाव रख 
अकड़ के चलता जाता हूँ  
मैं आज का रावण हूँ 
इसे क्रोध कहूँ या अभिमान कहूँ 
समझ मैं नहीं पाता हूँ 
मैं आज का रावण हूँ 
बस सब कुछ पाने के लोभ में 
हमेशा असन्तुष्ठ सा नजर मैं आता हूँ 
मैं आज का रावण हूँ 
माया के वशीभूत हो 
अपने स्वार्थ को सर्वश्रेठ मान 
झूठ को भी सच साबित कर जाता हूँ 
मैं आज का रावण हूँ 
disqualities in humanbeing, ravan , dusherra 2016,

आज का रावण 



आज के व्यक्ति का चरित्र कुछ इस कविता के सामान हो गया है.  सदाचारि मनुष्य के चार शत्रु हुआ करते है:क्रोध, अभिमान , माया और लोभ पर आज के युग में ये चारो उसके मित्र बन गए है. हर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का अतिशीर्घ विकास करने की मनोकामना रखने लगा  है जिससे लोग उसे  जाने पहचाने, उसकी तारीफ़ करे और उसका आंतरिक एवं बाह्य विकास हो जिससे उसी की पूछ हो और वो सर्वश्रेष्ठ हो जाए।  अतिशीघ्र आगे बढ़ने की चाह में इन चार मित्रो( क्रोध, अभिमान , माया और लोभ) को अपने साथ कर लेता है जिससे उसके मन पर कलुशता रुपी आवरण ढक जाता  है और उसे सही गलत का फर्क दिखना बंद हो जाता है.  परिणाम स्वरुप उसके चारित्रिक, भौतिक ,मानसिक , आध्यात्मिक और नैतिक रूप का पतन हो जाता है.

ये मनुष्य के चार शत्रु रावण सामान है जिसके वध के लिए राम रुपी चार मित्र: सरलता, शांति, मधुरता और संतोष उत्पन्न करने होंगे। अगर मनुष्य के चरित्र में ये चार मित्र आ जाए तभी मनुष्य प्रगति के मार्ग पर चल सकता है. ये मित्र ऐसे है की इन्हें अगर आप याद रखोगे तो ये आपका हर पररस्थिथि में साथ देंगे।






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