अगर हनुमान के लिये 100 योजन समुद्र एक बाथ टब था तो सुरसा के लिये बाल्टी। जो हनुमान इसे 10 मिनट में पार करते थे तो सुरसा के करवट लेते ही समुद्र ख़त्म हो जाता था। जिस हनुमान के लिए सूरज एक गेंद के जैसे थे, उसी हनुमान को सुरसा की नाक के कील बराबर होना पड़ा था। हो सकता है आपको कारण पता हो या ये भी की आप इससे अनभिज्ञ हों। पर आज हम आपको सुरसा और हनुमान जी की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं।
कौन थी ये सुरसा ?
जब प्रभु श्री राम को दिये हुए वचन को निभाने के लिये सुग्रीव ने अपनी वानर सेना के अलग अलग दल बना के माता सीता की खोज में भेजा तब हनुमान, जामवंत, नल-नील और अन्य वानर सेना एक ही दल में होने की वजह से माता सीता को खोजते-खोजते समुद्र तट पर पहुँच गयी। वहाँ से आगे जाने का रास्ता किसी को सूझ नहीं रहा था। तब जामवंत ने महाबली हनुमान को उनकी अदृश्य शक्तियों के बारे में याद दिलाया और उनको समुद्र के दूसरी तरफ जाने को प्रेरित किया। पर हनुमान को नहीं आभास था की समुद्र में नागमाता सुरसा उनका इंतज़ार कर रहीं थी।
हनुमान जी की युक्ति फेल हो गयी :
जब हनुमान समुद्र के ऊपर उड़ रहे थे तभी अचानक एक बड़े सांप ने उनका रास्ता रोका जिससे उन्हें बड़ा झटका लगा।
“मैं सभी साँपों की मां सुरसा हूँ। आज मैं तुम्हें खाऊँगी। बहुत दिनों से मुझे तुम्हारे जैसे शानदार बंदर को खाने का अवसर नहीं मिला।"
हनुमान ये सुनकर भौचक्के रह गए। उनका रास्ता हर तरफ से बंद था। उन्होंने इस नई समस्या का समाधान सोचा। हनुमान ने युक्ति अपनाई।
‘मैं भगवान राम की पत्नी सीता माता की खोज में जा रहा हूँ जिनका रावण नाम के राक्षस ने अपहरण कर लिया है। एक स्त्री होने के नाते इन विनाशकारी राक्षसों द्वारा किसी निर्दोष स्त्री के अपहरण से जुडी हुई नाजुक क़ानून और व्यवस्था को तुम अच्छी तरह समझ सकती हो। अत: मुझे जाने दो।'
हनुमान ने मां के दिल की गहराई में पहुँचने का तथा एक स्त्री के संकट में होने पर दूसरी स्त्री के मन में उसके प्रति उत्पन्न होने वाली दया भावना को स्पर्श करने का प्रयास किया। पर इससे काम नहीं बना।
हनुमान बदन बढ़ाते रहे और सुरसा मुँह खोलती रहीं :
हनुमान ने क्रोधावेश में सोचा और अंत में एक विचार किया क्योंकि समय बीतता जा रहा था।
‘ठीक है, तुम मुझे खा लो, मैं तैयार हूँ’, हनुमान ने कहा और अपने आकार को दस मील चौड़ा कर लिया। सुरसा ने भी अपने मुंह के आकार को दस मील चौड़ा कर लिया। हनुमान ने अब अपने मुंह को सौ मील चौड़ा किया। ऐसा ही सुरसा ने भी किया। अचानक ही हनुमान ने लघु रूप धारण किया और इससे पहले की सुरसा अपना मीलों चौड़ा मुंह वापस लाती उससे पहले ही हनुमान उसके मुंह, पेट में प्रवेश करके वापस आ गए।
‘मैंने पहले ही तुम्हारे मुंह में प्रवेश कर चुका हूँ। हे साँपों की माता, आपको नमस्कार’, हनुमान ने कहा।
सुरसा मुस्कुराई। उसने बताया कि वह उनकी परीक्षा ले रही थी जो अब समाप्त हुई। यह परीक्षा यह देखने के लिए की गयी थी कि लंका में जो कठिन काम हनुमान को करने के लिए दिया गया है उसके लिए हनुमान मज़बूत हैं अथवा नहीं। उन्होंने हनुमान को आशीर्वाद देकर आगे जाने दिया।