गोस्वामी श्री विट्ठलनाथ जी जैसा दूसरा कोई भक्त नहीं -
माना जाता हैं की गोसाँई श्री विट्ठलनाथ जी भगवान श्री पुंढरीनाथ के अवतार हैं। विट्ठलनाथ जी श्रीमद् वल्लभाचार्य जी के दूसरे पुत्र हैं। आपका जन्म सन १५७२, में कशी के पास स्थित चुनारगढ़ में हुआ था। विट्ठलनाथ जी ने आश्रम में जाकर शिक्षा प्राप्त की थी।
गोस्वामी विट्ठलनाथ जी की २ पत्निया थी। उनकी पत्नियां श्री रुक्मणी एवं श्री पद्मावती जी थी। विट्ठलनाथ जी के समय में श्री गोकुल एवं उनके महल की शोभा ऐसी ही थी जैसे की द्वापरयुग में श्री गोकुल एवं श्री नन्दबाबा जी के महल की थी। आप ठाकुर जी के बहुत बड़े भक्त थे।
दूध मिश्री का भोग और विट्ठलनाथ जी की भक्ति -
विट्ठलनाथ जी प्रितिदिन ठाकुर जी का भोग लगाते थे। विट्ठलनाथ जी ठाकुर जी को अपने बालक रूप में मानते थे। ऐसी भक्ति से जुडी एक अनसुनी कहानी इस प्रकार हैं। जैसा भाव विट्ठलनाथ जी का ठाकुर जी के प्रति भाव था वैसा ही ठाकुर जी का विट्ठलनाथ जी के प्रति था।
एक बार श्री विट्ठलनाथ जी ठाकुर जी को दूध पिला रहे थे, लेकिन श्री ठाकुर जी ने दूध का केवल एक घूँट पिया और दूध के कटोरे से मुह हटा लिया, विट्ठलनाथ जी ने पूछा ऐसा क्यों ? आप दूध क्यों नहीं पी रहे हो ? तब ठाकुर जी ने बोला की दूध में मिश्री बहुत ज्यादा हैं इतना मीठा दूध कौन पी सकता हैं भला ?तब विट्ठलनाथ जी के द्वारा विनती करने पर थोड़ा सा दूध पिया।
दूसरी बार जब विट्ठलनाथ जी ने ठाकुर जी को दूध का भोग लगाया तब फिर ठाकुर जी ने दूध का केवल एक ही घूँट पिया और दूध के कटोरे से मुह हटा लिया। विट्ठलनाथ जी के पूछने पर ठाकुर जी ने बताया इसमे मिश्री बहुत कम हैं।
अगले दिन जब विट्ठलनाथ जी ठाकुर जी का भोग लगा रहे थे तब उन्होंने दूध और मिश्री को अलग -अलग रख दिया। ठाकुर जी ने पूछा आप ऐसे क्यों लाये तब विट्ठलनाथ जी ने बोला आप अपने अनुसार दूध में मिश्री डाल लीजिए आपको मेरे द्वारा डाला गया मीठा पसन्द नहीं आता हैं।
उनके ऐसा बोलने पर ठाकुर जी ने बोला मुझे तो मिश्री मिलानी ही नहीं आती हैं। तब ठाकुर जी विट्ठलनाथ जी वक्ष-स्थल से चिपक गए।
ठाकुर जी की शयन शैया लीला -
एक दिन जब विट्ठलनाथ जी ठाकुर जी की शैया लगा रहे थे तब ठाकुर जी ने उनको बोला उनकी शैया सही नहीं हैं इस प्रकार उनको नींद नहीं आती हैं। कभी बोलते उनका बिछौना सही नहीं हैं कभी बोलते स्थान सही नहीं हैं। उस रात विट्ठलनाथ जी ने कितने ही तो बिछौने बदले और कितनी बार ही शैया सही की थी। तब वो परेशान होकर ठाकुर जी से बोले आप अपनी अनुकूलता के अनुसार स्वयं ही शैया सही कर लीजिये।
तब ठाकुर जी ने विट्ठलनाथ जी को रात्रि में देकर बोला अगर आप मुझे अगर बालक रूप में मानते हैं तो मेरा पालन एक बालक रूप में ही करो। तब ठाकुर जी ने बोला जब मैं आपकी गोदी में शयन करता हूँ तो मुझे निद्रा भी अति सुन्दर आती हैं और मुझे अकेले में निद्रा भी नहीं आती हैं।