मै जब गर्मी की छुट्टियों में अपने ननिहाल जाता था तब वहाँ आम के पेड़, हरे भरे खेत, गाँव किनारे की नहर, घर का बरामदा और एक नानी मिलती थीं | खेतों के पास लगे आम के पेड़ से आम तोड़ना और उन्हें नहर किनारे बैठ कर खाना और फिर शाम ढलने से पहले भागकर बरामदे में पड़ी चारपाई पर लेट जाना सिर्फ इसलिए सुकून देता था क्योंकि तब एक नानी कटोरी में सरसों का तेल लेकर वहाँ बैठी होती थीं एक नयी कहानी के साथ |
नानी की कहानी के हीरो या तो राम होते थे या फिर कृष्ण या फिर कोई महाभारत का किस्सा होता था | कभी कभी सोनपरी और डाकू मंगल भी कहानी का हिस्सा बनते थे | पर जो किस्सा मुझे कभी नहीं भूलता वो था मेरा रामायण की कहानिया सुनने के बाद पूछा गया भोला सा बचकाना सा सवाल |
नानी की कहानी के हीरो या तो राम होते थे या फिर कृष्ण या फिर कोई महाभारत का किस्सा होता था | कभी कभी सोनपरी और डाकू मंगल भी कहानी का हिस्सा बनते थे | पर जो किस्सा मुझे कभी नहीं भूलता वो था मेरा रामायण की कहानिया सुनने के बाद पूछा गया भोला सा बचकाना सा सवाल |
"हनुमान जी तो सबको उड़ा ले जाते फिर राम जी समुद्र पर पुल क्यों बनवाये ?"
नानी जो जवाब देती थी उसका मतलब तब समझ नहीं आता था | अब जब समझ आया तो सोचा आपको भी बता दूँ | तो आइये आज आपको बताते हैं इस निर्णय के पीछे की पूरी कहानी |
हे हनुमान, शत्रुओं का नाश करने वाले ! तुम अपने आप में निश्चित रूप से इस कार्य के लिए पर्याप्त हो और इसे एक हाथ से ही पूरा कर सकते हो ||
परंतु, यह प्रभु श्री राम के लिये ही उपयुक्त होगा की वो अपने तीरों से विरोधी ताकतों को नष्ट कर, मुझे अपने साथ लेने के लिये आयें ||
इसलिए, तुम उच्च तन-मन से प्रभु श्री राम की लड़ाई में वीरतापूर्वक प्रदर्शन करो, इससे तुम्हारे कौशल और योग्यता का चरों दिशाओं में गुणगान होगा ||
अगर हनुमान जी उस क्षण माता सीता की बात ना मानते और प्रभु श्री राम के तरीके में हस्तक्षेप करते तो वो कभी भी रामभक्त हनुमान नहीं कहलाते | उनका यश कभी भी इतना नहीं फैलता | प्रभु श्री राम तो भगवान् विष्णु के अवतार थे, अगर वो चाहते तो एक क्षण में रावण का अंत कर देते पर उस समय वो एक मनुष्य अवतार में थे और उनको उस मर्यादा में रहकर ही सबकुछ करना था | और माता सीता के कथनानुसार हनुमान जी भी एक भक्त के रूप में ही प्रभु की मदद कर सकते है | इसी वजह से हनुमान जी ने हर एक पल पर राम जी की सेवा इस भाव से की जिससे उनका और प्रभु राम दोनों का गौरव और यश चारो दिशाओं में बढ़ा |
जवाब छिपा है माँ सीता और हनुमान के इस संवाद में :
कामम् अस्य त्वम् एव एकः कार्यस्य परिसाधने
पर्याप्तः पर वीरघ्न यशस्यः ते बल उदयः ||
शरैस्तुः सम्कुलाम् कृत्वा लन्काम् पर बल अर्दनः
माम् नयेत् यदि काकुत्स्थः तस्य तत् सादृशम् भवेत् ||
तत् यथा तस्य विक्रान्तम् अनुरूपम् महात्मनः
भवति आहव शूरस्य तत्त्वम् एव उपपादय ||
अर्थात :
परंतु, यह प्रभु श्री राम के लिये ही उपयुक्त होगा की वो अपने तीरों से विरोधी ताकतों को नष्ट कर, मुझे अपने साथ लेने के लिये आयें ||
इसलिए, तुम उच्च तन-मन से प्रभु श्री राम की लड़ाई में वीरतापूर्वक प्रदर्शन करो, इससे तुम्हारे कौशल और योग्यता का चरों दिशाओं में गुणगान होगा ||
अगर हनुमान जी उस क्षण माता सीता की बात ना मानते और प्रभु श्री राम के तरीके में हस्तक्षेप करते तो वो कभी भी रामभक्त हनुमान नहीं कहलाते | उनका यश कभी भी इतना नहीं फैलता | प्रभु श्री राम तो भगवान् विष्णु के अवतार थे, अगर वो चाहते तो एक क्षण में रावण का अंत कर देते पर उस समय वो एक मनुष्य अवतार में थे और उनको उस मर्यादा में रहकर ही सबकुछ करना था | और माता सीता के कथनानुसार हनुमान जी भी एक भक्त के रूप में ही प्रभु की मदद कर सकते है | इसी वजह से हनुमान जी ने हर एक पल पर राम जी की सेवा इस भाव से की जिससे उनका और प्रभु राम दोनों का गौरव और यश चारो दिशाओं में बढ़ा |