भारतीय समाज में सदियों से पितृसत्तात्मक सोच का बोलबाला रहा है। वर्षों पहले से चली आ रही रूढ़िवादी सोच के अंतर्गत हमने पुरुष और स्त्री के खान-पान, पहनावे-ओढ़ावे, रहन-सहन को अलग-अलग कर रखा है। पर अगर हम अपनी सांस्कृतिक जड़ो को ध्यान से पकड़े तो हमे ये बात समझते देर नहीं लगेगी की ये सब बंदरबाट इस समाज का बनाया हुआ है ना की हमारे धर्म का। तो बात त्रेता युग की है जब सिन्दूर सिर्फ किसी औरत की मांग की शोभा था। पुरुषो या किसी भी एनी जीव जंतु का सिन्दूर से श्रृंगार करना अपवाद था। उस समय एक राम भक्त ने अपने प्रभु के लिये अपने पूरे शरीर पर सिन्दूर मल लिया। जी हाँ आज हम आपको बताते है हनुमान जी का वो किस्सा जिसके बाद से उनका सिन्दूर से श्रृंगार होने लगा।
इसलिए लगाया जाता है सिंदूर:
एक बार जब हनुमानजी को भूख लगी तो वे भोजन के लिए सीताजी के पास गए। सीताजी की मांग में सिंदूर लगा देखकर वे चकित हुए और उनसे पूछा, मां, आपने ये क्या लगाया है? तब सीताजी ने उनसे कहा, यह सिंदूर है, जो सौभाग्यवती महिलाएं अपने स्वामी की लंबी उम्र, प्रसन्नता और कुशलता के लिए लगाती हैं।
उन्होंने पूरे बदन पर सिंदूर लगा लिया और भगवान श्रीराम की सभा में गए। हनुमान का यह रूप देखकर सभी सभासद हंसे। भगवान श्रीराम भी स्वयं के प्रति उनके प्रेम को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने हनुमानजी को यह वरदान दिया कि जो भी मनुष्य मंगलवार और शनिवार को उन्हें घी के साथ सिंदूर अर्पित करेगा, उस पर स्वयं श्रीराम भी कृपा करेंगे और उसके बिगड़े काम बन जाएंगे।
वैज्ञानिक तथ्य:
विज्ञान कहता है कि हर रंग में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है। चूंकि हनुमानजी महाबलशाली और महापराक्रमी हैं, इसलिए उन्हें वही पदार्थ अर्पित किए जाते हैं जो ऊर्जा और पराक्रम से संबंधित हों। सिंदूर ऊर्जा का प्रतीक है और जब हनुमानजी को अर्पित करने के बाद भक्त इससे तिलक करता है तो दोनों आंखों के बीच स्थित ऊर्जा केंद्र सक्रिय हो जाता है।