Hinduism

क्योंकि काशी की होली में गालों पर रंग के साथ आशीर्वाद भी मलते है | Why Holi in Varanasi is so auspicious?



होली का जिक्र बिना बनारस के करना बिलकुल वैसा ही है जैसे बादल के बिना बारिश। अगर होली के खुमार ठीक से देखना हो तो बनारस आ जाइये। यहाँ आपको सब मिलेगा। भांग का नशा, रंगों का अम्बार, गुलाल की लाली, बुजुर्गों का आशीर्वाद। ये भी हो सकता है की आपको अगली गली में कोई देवता गालों पर गुलाल मलते नज़र आ जायें। तो ऐसा क्या है जो इस शहर की होली में जो इसे इतना ख़ास बनती है ? आइये जानते हैं आज के इस विशेषांक में।

होली की काशी में मान्यता :

फाल्गुन शुक्ल-एकादशी को 'रंगभरी एकादशी' भी कहा जाता है। मान्‍यता है कि रंगभरी एकादशी (आमलकी एकादशी) के दिन ही भगवान शिव, माता पार्वती से विवाह कर पहली बार अपनी प्रिय काशी नगरी पधारे थे। इस दिन काशी स्‍थित द्वादश ज्‍योतिर्लिंगों में से अति महत्‍वपूर्ण 'विश्‍वेश्‍वर ज्‍योतिर्लिंग' का भव्‍य श्रृंगार किया जाता है। इसी के साथ काशी में होली का पर्वकाल प्रारंभ हो जाता है। प्रतिवर्ष श्री काशी विश्वनाथ का भव्य श्रृंगार रंगभरी एकादशी, दीवाली के बाद अन्नकूट तथा महाशिवरात्रि के अवसर पर होता है।


इस पुनीत अवसर पर शिव परिवार की चल प्रतिमायें काशी विश्वनाथ मंदिर में लायी जाती हैं और बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंगल वाद्ययंत्रो की ध्वनि के साथ काशी क्षेत्र के भ्रमण पर निकलते हैं। इस अवसर पर शिव की प्रजा जहां अपने आदि अधिपति का सपरिवार दर्शन करते हैं वहीं शिव के साथ होली का लुत्‍फ भी उठाते हैं।

काशी में मां पार्वती का प्रथम आगमन :


यह पर्व काशी में मां पार्वती के प्रथम स्वागत का भी सूचक है। जिसमें उनके गण उन पर व समस्त जनता पर रंग अबीर गुलाल उड़ाते, खुशियां मानते चलते हैं। इस अवसर पर काशी की सभी गलियां पूरी तरह से रंगों से सराबोर हो जाती हैं। हर तरफ बस हर-हर महादेव का उद्गोष वातावरण में गुंजायमान रहता है। इसके बाद श्री 'विश्‍वेश्‍वर' को सपरिवार मंदिर के गर्भगृह में लाया जाता है। जहां उनका श्रृंगार कर उन्‍हें अबीर, रंग, गुलाल आदि अर्पित किया जाता है। 

शिव से है काशी, काशी ही शिव है :


श्री काशी विश्वनाथ मंदिर एक प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर है जिससे काशी की जनता का भावनात्मक लगाव है। काशी की जनता जहां अपना सर्वस्व श्री काशी विश्वनाथ को मानती है और सुब कुछ उन्‍हीं को समर्पित कर अपने आप को धन्य मानती है वहीं शिव का आशीर्वाद भी हर पल काशी की जनता को प्राप्‍त होता है। काशी को अविमुक्‍त भी कहते हैं अर्थात् शिव इस क्षेत्र को कभी भी छोड़ के कहीं नहीं जाते।



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