जैसा की हमें ज्ञान है कि नवरात्र का तीसरा दिन माँ चंद्रघंटा को समर्पित होता है। हिन्दू धर्म में माँ चंद्रघंटा को माता दुर्गा का तीसरा अवतार कहा गया है। चंद्रघंटा का अर्थ है 'चंद्र और घंट को धारण करने वाली '। आमतौर पर हमें माँ चंद्रघंटा के सन्दर्भ में बहुत ही कम बाते पता चलती है जैसे की उनका जन्म कैसे हुआ ?, उनकी उत्पत्ति के पीछे क्या कारण था ?, उनकी पूजा क्यों की जाती है ? तो आइये आज के इस विशेषांक में हम आपको बताते हैं माँ चंद्रघंटा की वो आरती जिसे हर किसी को उनकी पूजा के बाद पढ़ना चाहिये।
माँ चंद्रघंटा जी की आरती :
जय माँ चन्द्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती।
चन्द्र तेज किरणों में समाती॥
क्रोध को शांत बनाने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली॥
मन की मालक मन भाती हो।
चंद्रघंटा तुम वर दाती हो॥
सुन्दर भाव को लाने वाली।
हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये।
श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए॥
मूर्ति चन्द्र आकार बनाए।
शीश झुका कहे मन की बाता॥
पूर्ण आस करो जगत दाता।
कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥
कर्नाटिका में मान तुम्हारा।
नाम तेरा रटू महारानी॥
भक्त की रक्षा करो भवानी।