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एक मंदिर ऐसा भी जहाँ चोरी करने पर पूरी होती है मनोकामना | A temple with weird ritual of stealing



*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है। 


वैसे तो हमारे समाज में चोरी करना महापाप माना जाता है। अगर चोरी मंदिर में की जाए तो कहते हैं उसे भगवान भी नहीं माफ करते हैं। लेकिन हमारे देश में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां भक्त सिर्फ चोरी करने के लिए ही आते हैं। यहां चोरी करने पर भक्त को न सिर्फ वरदान के रूप में पुत्र मिलता है, बल्कि हर मनोकामना भी शीघ्र पूरी होती है। इस मंदिर का नाम सिद्धपीठ चूड़ामणि देवी मंदिर है। स्थानीय लोगों के अनुसार वैसे तो इस मंदिर में आने  हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है, लेकिन उन भक्तों की संख्या अधिक होती है, जिन्हें अपने संतान के रूप में पुत्र की चाह होती है।

चुराते हैं लोकड़ा :


जिन्हें पुत्र की चाह होती है, वे पति-पत्नी रुड़की के चुडिय़ाला गांव स्थित प्राचीन सिद्धपीठ चूड़ामणि देवी मंदिर में आते हैं और उन्हें  माता के चरणों से लोकड़ा (लकड़ी का गुड्डा) चोरी करके अपने साथ लेकर जाना जाता होता है।  जब उनकी मनोकामना पूर्ण होती हो जाती है तो उन्हें अपने बेटा के साथ यहां माथा टेकने आना होता है।  पुत्र होने पर उन्हें मंदिर में भंडारे का आयोजन भी कराना होता है। इसके साथ ही चोरी किए गए लोकड़े के साथ ही एक अन्य लोकड़ा भी अपने पुत्र के हाथों से चढ़ाना भी जरूरी होता है। इसके अलावा हर भक्त जिसकी मनोकामना यहां आने से पूर्ण होती है उसे लोकड़ा मंदिर में चढ़ाना होता है।

ऐसे हुआ मंदिर का निर्माण :


ये मंदिर काफी पुराना है। इस मंदिर का निर्माण 1805 में लंढौरा रियासत के राजा ने करवाया था। बताया जाता है। कि राजा के कोई पुत्र नहीं था। वे माता का बड़ा भक्त था। एक दिन वे जंगल में शिकार खेलने आया, जहां उसे मां के पिंडी रूप के दर्शन हुए और उसने मां से पुत्र मांगा। मनोकामना पूर्ण होने पर उसने इस मंदिर का निर्माण कराया। पहले इस मंदिर के आस-पास काफी घना जंगल हुआ करता था। ऐसा बताया जाता है तब शेर भी माता के दर्शन के लिए आया करते थे।  मंदिर परिसर में माता के भक्त बाबा बनखंडी की भी समाधि स्थल है। बाबा ने १९०९ में समाधि ली थी।

मंदिर के पीछे की कथा :


एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। इस बात से माता सति को बहुत क्रोधित हुई और उन्होंने यज्ञ में कूद अपनी जान दे दी। इस जब भोलेनाथ माता सति का मृत शरीर अपने साथ लेकर जा रहे थे, तब माता का चूड़ा इस जगह पर गिरा। इसके बाद माता सति यहां पिंडी रूप में प्रकट हुई। हर साल यहां लाखों श्रद्धालु यहां माथा टेकने के लिए आते हैं। नवरात्र के दिनों में यहां मेले का आयोजन भी किया जाता है। लोगों को पैर रखने की भी जगह नहीं मिलती है।



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