*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
ये है अनोखी कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहा था। वे अपना एक-एक सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था। जब रावण अपना दसवां सिर चढ़ाने वाला था, तब भोले बाबा ने उसे दर्शन दिए। रावण ने शिवजी से कामना लिंग को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया। महादेव ने उसकी इस मनोकामना को पूरा तो किया पर साथ ही एक शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कही भी रखा तो मैं फिर वहीं रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा। रावण ने शर्त मान ली। इसबात से सभी देवाता परेशान हो गए और वे अपनी समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने लीला रची। भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा, इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास उसे लघुशंका लगी।ऐसे में रावण एक ग्वाले को शिवलिंग देकर लघुशंका करने चला गया. कहते हैं उस बैजू नाम के ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु थे। इस वहज से भी यह तीर्थ स्थान बैजनाथ धाम और रावणेश्वर धाम दोनों नामों से विख्यात है। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक रावण कई घंटो तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में है। इधर बैजू ने शिवलिंग धरती पर रखकर को स्थापित कर दिया।
जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब उसे भी भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह गुस्से में शिवलिंग पर अपना अंगूठा गढ़ाकर चला गया। इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिव-स्तुति करके वापस स्वर्ग को चले गए। तभी से महादेव कामना लिंग के रूप में देवघर में विराजते हैं।
लगता है भक्तों का मेला :
कुछ रोचक बातें :
- ये मंदिर ५१ शक्तिपीठों में एक हैं।
- भगवान राम और हनुमान ने भी कांवड यात्रा यहां की थी।
- मंदिर के मध्य प्रांगण में भव्य 72 फीट ऊंचा शिव का मंदिर है। इसके अतिरिक्त प्रांगण में अन्य 22 मंदिर स्थापित हैं।